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जोशीमठ ही नहीं और भी पहाड़ी शहर हैं ऐसी ही तबाही के मुहाने पर! क्या कहती है GSI की रिपोर्ट?

सिर्फ जोशीमठ की नहीं बल्कि देश के ज्यादातर पहाड़ी शहरों खासकर ग्लेशियर के समीप बसे शहरों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। अगर हालात वक्त पर नहीं सुधरे तो जोशीमठ जैसे हालात देश के तमाम बड़े पहाड़ी शहरों के होने वाले हैं। क्योंकि पहाड़ पर हो रहा अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण से न सिर्फ पहाड़ों के गुरुत्वाकर्षण केंद्र में खलल पैदा हुआ है, बल्कि कई पहाड़ी शहरों के नीचे पानी के जमा होने का भी अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसी दशा में पहाड़ों पर बसे शहरों की जमीन के नीचे का हिस्सा न सिर्फ कमजोर हुआ है, बल्कि बड़ी तबाही की ओर इशारा कर रहा है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक और नॉर्दन रीजन के विभागाध्यक्ष रहे डॉक्टर सोमनाथ चंदेल कहते हैं कि जोशीमठ जैसे और भी कई शहर ऐसी ही तबाही के निशाने पर हैं।

डॉक्टर चंदेल कहते हैं कि जोशीमठ हिमालय रीजन का वह पुराना शहर है, जहां बारिश भी होती है और बर्फबारी भी होती है। उनका कहना है कि इस दृष्टिकोण से वह इलाके ज्यादा खतरनाक होते हैं, जहां पर अंधाधुंध और बेतरतीब तरीके से निर्माण हो रहा हो, साथ ही साथ बर्फबारी और बारिश का भी स्तर बराबर का हो। उनका तर्क है कि जब बर्फ का बड़ा हिस्सा पिघलता है, तो वह पहाड़ों से होता हुआ नीचे किसी नदी में जाकर मिलता है। लेकिन वह चिंता इस बात पर ज्यादा जता रहे हैं कि कुछ शहर ऐसे हैं जिसमें निर्माण कार्य तो गलत तरीके से हुआ ही, साथ में ऐसे निर्माण से ग्लेशियर में जमा बर्फ के पिघलने वाले पानी का जो प्राकृतिक रास्ता था, वह अवरोधित हो गया। नतीजतन वह शहर के ही किसी एक हिस्से में जाकर जमा होने लगा। चंदेल कहते हैं कि इससे किसी भी पहाड़ी शहर की सिर्फ नींव कमजोर होने लगी बल्कि पूरे के पूरे शहर तबाही के निशाने पर आ गए।

वह कहते हैं कि बतौर विभागाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने नॉर्दन रीजन के पहाड़ी इलाकों में होने वाले बेतरतीब निर्माण और इस इलाके के गुरुत्वाकर्षण केंद्र के खिसकने की चिंताजनक रिपोर्ट भी तैयार की थी। डॉक्टर चंदेल कहते हैं कि जुलाई 2021 में भी पहाड़ों पर हुए जबरदस्त भूस्खलन और शहरों की तबाही पर उन्होंने ऐसे डेंजर जोन वाले शहरों की शिनाख्त भी की थी। उनके मुताबिक पहाड़ों की टो कटिंग और बेतरतीब तरीके से हो रहे निर्माण की वजह से ऐसे हालात बने हैं। डॉक्टर चंदेल का कहना है, कोई भी पहाड़ तभी तक टिका रह सकता है, जब उसका गुरुत्वाकर्षण केंद्र स्थिर हो। पहाड़ों की तोड़फोड़ और पहाड़ों पर बेवजह के बोझ से उसका स्थिर रखने वाला गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह छोड़ देता है। इस बात की जानकारी अतिक्रमण करने वालों को नहीं होती है और नतीजा पहाड़ों के खिसकने से लेकर अकसर होने वाली लैंडस्लाइडिंग के तौर पर सामने आता है।

डॉक्टर चंदेल बताते हैं उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से लेकर नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में पहाड़ों पर एक शोध किया था। इस शोध में पहाड़ों की मजबूती और पहाड़ों की मिट्टी से लेकर उसके पूरे भौगोलिक परिदृश्य को शामिल किया गया था। डॉक्टर चंदेल बताते हैं कि उन्होंने अपने अध्ययन में पाया था कि वे पहाड़ जहां पर इंसानी बस्तियां बहुत ज्यादा बसने लगी हैं, वहां पहाड़ धीरे-धीरे ही सही लेकिन खोखले होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि पहाड़ पर बनने वाले एक मकान या एक सड़क या एक टनल के लिए भी वैज्ञानिक सर्वेक्षण बहुत जरूरी होता है। उनका कहना है क्योंकि पहाड़ की मजबूती बनाए गए मकान, बनाई गई सड़क और बनाई गई टनल के दौरान काटे गए पहाड़ के मलबे से ही जुड़ी होती है।

डॉक्टर चंदेल इस बात की चिंता जाहिर करते हैं कि जिस तरीके से हमारी पुरानी सभ्यताएं पहाड़ों पर रहती थी, आज धीरे-धीरे उनके सिर्फ निशान बाकी रह गए हैं, इसलिए जिम्मेदारों समेत हम सभी को पहाड़ों पर बसे शहरों को सही तरीके से बसाने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि अगर अभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले दिनों में पहाड़ों पर बसे शहर इतिहास हो जाएंगे। भौगोलिक दृष्टिकोण के लिहाज से यह आज से नहीं बल्कि बीते कई हजारों साल से होता आया है, इसलिए समय पर सतर्क होकर न सिर्फ इंसानी जान को बचाया जा सकेगा, बल्कि अपने पहाड़ी विरासतों वाले शहरों को भी बचाया जा सकेगा। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक कहते हैं कि इस वक्त हमारे पास तकनीकी भी है और वक्त रहते किसी भी खतरे को भागने का अंदाजा भी है। इसलिए पहाड़ों के दोहन को न सिर्फ रोकना होगा बल्कि भविष्य के लिहाज से उसको सुरक्षित भी रखना होगा।