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पारंपरिक खेती छोड़ नीरव कर रहे मोती की खेती, आज सलाना कर रहे हैं लाखों की आमदनी

नई दिल्ली: हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ किसान दिन-रात मेहनत कर बंजर पड़ी खेतों की मिट्टी को भी सोना उगलने लायक बना देते हैं। पहले किसान पारम्परिक खेती किया करते थे परंतु आज किसान मॉर्डन तकनीक को अपनाकर खेती कर रहें हैं। कुछ किसान हाइड्रोपोनिक्स पद्धति को अपना रहे है तो कुछ ड्रिप इरीगेशन पद्धति को। आज हम आपको एक ऐसे किसान से मिलाएंगे, जो पारम्परिक खेती को छोड़ मोती की खेती प्रारंभ किए और आज उन्हें उससे लाखों का लाभ मिल रहा है।

नीरव पटेल सूरत (Surat) से ताल्लुक रखते हैं और वह एक किसान फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं। उनके पिता प्रारम्परिक खेती कर आजीविका चलाया करते थे। अपनी इस खेती से उन्हें कुछ लाभ नहीं मिल पा रहा था जिससे उन्हें थोड़ी तकलीफ़ भी होती थी। वर्ष 2018 में नीरव पटेल ने मोतियों की खेती प्रारंभ की। जिससे उन्हें लाभ हुआ और आमदनी भी अच्छी-खासी हुई। वर्तमान में उनके पास 5 तलाब है जिसमें वह मोतियों की खेती कर रहें हैं। अपनी इस खेती से उन्हें प्रत्येक वर्ष 5 लाख रुपए का लाभ मिल रहा है।

नीरव ने अपने ग्रेजुएशन की शिक्षा संपन्न करने के उपरांत खेती प्रारंभ की। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि उन्हें पारंपरिक खेती से कुछ लाभ नहीं मिलने वाला इसीलिए उन्होंने कुछ अलग करने का निश्चय किया। जिसके लिए उन्होंने इंटरनेट से सारी जानकारी इकट्ठा की। जब वह पढ़ाई किया करते थे उस दौरान मोतियों की खेती के बारे में एक चिखली के किसान से सुना था। उन्होंने निश्चय किया क्यों ना मैं भी इसमें अपना लक आजमाऊँ और मोतियों की खेती करुं। फिर वहां जाकर सारी जानकारी एकत्रित कर घर आएं।

नीरव पटेल ने अपने गांव से इस खेती का शुभारंभ किया। उन्होंने एक तलाब खुदवाए और आगे तालाबों की संख्या बढ़ाई। उसमें उन्होंने बाहर से सीपियां मंगाकर डाला एवं मोती की खेती प्रारंभ की। मात्र 200000 रुपए की लागत के साथ प्रारंभ हुई मूर्तियों की खेती से डेढ़ साल बाद आमदनी होने लगा। वह डिजाइन पलमा मोती का निर्माण करते हैं और उनके मोतियों का डिमांड सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है।

CIFA के डायरेक्टर एस.के. स्वैन के अनुसार अगर आप मोतियों की खेती करना चाहते हैं तो तीन स्रोत का होना अनिवार्य है। पहला तलाब जो कम-से-कम 10×15 का हो। इस तलाब में जो पानी होगा वो पीने योग्य होना चाहिए। आप चाहें तो सीमेंट के टब का भी उपयोग कर सकते हैं। दूसरी चीज़ आपके पास सीपी का होना भी अनिवार्य है। सीपियां बाज़ारो में मिलती है या आप नदी से भी निकाल सकते हैं। तीसरी चीज़ में शामिल है मोती का बीज यानी सांचा, जिस पर आप कटिंग कर विभिन्न आकृति के मोतियों का निर्माण कर सकते हैं।

वैसे तो मोती को तैयारी होने में लगभग 1 साल का समय लगता है। पहले सीपी के बॉक्स को थोड़ा खोला जाता है फिर उसमें बीज को डालकर बन्द कर दिया जाता है। अगर कोई इंजरी हुई तो उनका इलाज भी किया जाता है। एक सीपी से आपको 2 मोती निकलेगी। सीपियों का ऑपरेशन कर मोती को निकाल दिया जाता है। सर्जरी के उपरांत इन्हें नायलॉन के जालीदार बैग में रखकर नेट के जरिए तालाब में 1 मीटर गहरे पानी मे लटकाया जाता है। इस दौरान आपको ध्यान रखना है कि यहां ज्यादा धूप ना लगें। इसकी खेती के लिए बरसात का मौसम बेहतर रहता है। खाने के तौर पर तालाब में गोबर के उपले और कवक डाले जाते हैं। इनका पूरी तरह देखभाल के साथ निरीक्षण होता और जो सीपियां मर चुकी हैं उन्हें बाहर निकल दिया जाता है।

अगर आप मोतियों की खेती का प्रशिक्षण लेना चाहते हैं तो कृषि विज्ञान केंद्र से कॉन्टेक्ट कर सकते हैं। इंडियन काउंसिल फ़ॉर एग्रीकल्चर रिसर्च के तहत एक नया विंग भुनेश्वर में बनाया गया है, जिसका नाम CIFA है। CIFA के डायरेक्टर एसके स्वैन ने बताया कि जब कोरोनाकाल नहीं था तो हम यहां लोगों को एक सप्ताह का प्रशिक्षण देते थे, जिसमें खेती का पूरा प्रोसेस मौजूद है। प्रशिक्षण के लिए आपको 8 हज़ार रुपए फीस देनी पड़ेगी। वैसे तो अब वर्चुअल प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिसकी फीस मात्र 1 हज़ार रुपए है। इस ऑनलाइन प्रशिक्षण के माध्यम से लगभग 600 लोगों को प्रशिक्षण मिल चुका है। अगर आप चाहे तो प्राइवेट संस्थान एवं निजी स्तर पर इसका प्रशिक्षण ले सकते हैं।

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