सलाम! झोंपड़ी में रहने वाले इस 75 साल के बुजुर्ग ने बच्चों के भविष्य के लिए दान कर दी 2 एकड़ जमीन

नई दिल्ली: इरोड के बरगुर की पश्चिमी पहाड़ियों में बसे कोंगडाई एसटी कॉलोनी में 75 वर्षीय सदायन की मदद के कारण यहां के बच्चों में बेहतर भविष्य की उम्मीद जागी है. इस बुजुर्ग ने स्कूल बनाने के लिए अपनी दो एकड़ जमीन दान में दे दी.

2010 तक इस गांव में बड़े पैमाने पर बाल श्रम होता था. इसका बड़ा कारण था गांव में एक भी स्कूल का ना होना. ऐसे में खुद अशिक्षित सदायन ने जो भूमि का दान दिया उसी के कारण सुदर नामक एक गैर सरकारी संगठन यहां स्कूल बनवा कर बच्चों को बाल श्रम से बचाने में कामयाब हो पाया. सुदर नामक ये संस्था आदिवासी छात्रों की शिक्षा के लिए काम करती है. इस संस्था ने 40 छात्रों को बाल श्रम से छुड़ाया है.

मुख्य धारा की शिक्षा में शामिल होने से पहले यह सुविधा छात्रों के लिए एक ब्रिज-स्कूल के रूप में थी. सदायन द्वारा दिए गए दान से पहले गांव के बच्चे यहीं के एक घर में पढ़ते थे. जब अधिक बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराने के बाद उन्हें पढ़ाने का फैसला किया गया तो बच्चे बढ़ने के कारण वो घर छोटा पड़ने लगा जहां अन्य बच्चे पढ़ा करते थे. इसके बाद बच्चों की पढ़ाई एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे होने लगी. जब बारिश होती तो ये बच्चे मंदिर के शेड में चले जाते.

ये सब उन परोपकारियों की देन थी जो यहां बच्चों को कपड़े बांटने आए थे. उन्होंने यहां इस बात पर ध्यान दिया कि बच्चों को पढ़ाई के लिए एक इमारत की जरूरत है. उन्होंने तय किया कि वे यहां बच्चों के लिए स्कूल बनवाएंगे. उनका अगला कदम था स्कूल के लिए उपयुक्त जमीन खोजना. सुदर संगठन इस मामले पर चर्चा कर ही रहा था उसी बीच सदायन ने अपनी मर्जी से अपनी जमीन दान में दे दी.

सदायन का कहना था कि वह खुद शिक्षित नहीं हैं. उनके बच्चे भी गांव में सुविधाओं की कमी के कारण स्कूल नहीं जा सके. उसके प्रयास के कारण कम से कम अगली पीढ़ी तो पढ़ सकती है. ये कहते हुए 75 साल के सदायन ने अपनी 2 एकड़ जमीन स्कूल के लिए दान कर दी. इसके बाद स्कूल की इमारत को बनने में कुछ साल का समय और 3 लाख रुपये लगे.

बड़ी बात ये है कि स्कूल के लिए 2 एकड़ जमीन दान करने वाले सदायन खुद एक छोटी सी झोंपड़ी में रहते हैं. संस्था ने अब फैसला किया है कि वह सदायन के लिए एक पर्यावरण के अनुकूल घर बनाएगी और उन्हें सम्मानित भी करेगी.

 

 

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