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वो रहस्यमयी बीमारी, जिसमें डांस करते हुए लोग मरने लगे, चपेट में आए थे चार देश

ईरान में स्कूली बच्चियां रहस्यमयी ढंग से बीमार होकर अस्पताल पहुंच रही हैं. तेहरान समेत पांच बड़े शहरों से लगातार ऐसे वीडियो वायरल हुए, जहां छात्राएं बीमार होकर अस्पताल पहुंच रही हैं. इसपर अलग-अलग थ्योरीज आ रही हैं. कोई इसे सरकार की साजिश बता रहा है तो कोई मास हिस्टीरिया. वैसे मास हिस्टीरिया के बहुतेरे मामले लगातार आते रहते हैं, लेकिन कई सौ साल पहले एक अजब किस्म के हिस्टीरिकल दौरे ने यूरोपियन सरकारों की नाम में दम कर दिया था. इसे डांसिंग मेनिया कहा गया. लोग नाचते-नाचते सड़कों पर दम तोड़ रहे थे.

वहां पिछले साल सितंबर में महसा अमीनी नाम की एक 22 साल की युवती की मौत के बाद देशभर में प्रदर्शन हुए. महसा ने ईरान के महिला ड्रेस कोड के खिलाफ अपने बाल कटवा लिए थे और हिजाब भी उतार दिया था. कुछ समय बाद तेहरान में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. आरोप लगा कि पुलिस प्रताड़ना की वजह से उनकी मौत हुई जिसके बाद महिलाएं सड़कों पर उतर आईं. तब से वहां ड्रेस कोड को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. अब छात्राओं को जहर देने की खबर सामने आई.

कई ईरानी शहरों में करीब 900 स्कूली छात्राओं को जहर देने की खबर है. आरोप है कि सरकार समर्थक कट्टरपंथियों द्वारा बदला लेने के लिए यह ‘जहर’ वाला हमला किया जा रहा है है ताकि लड़कियां स्कूल न जा सके. महसा की मौत के बाद देश में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों से कट्टरवादी लोग बौखलाए हुए हैं और महिलाओं को इस तरह निशाना बना रहे हैं. वहीं ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी इसे तेहरान के दुश्मनों के काम बता रहे हैं. मामले की जांच चल रही है.

जुलाई 1374 में यूरोप के चार देशों में तहलका मच गया. जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम और लग्जमबर्ग में लोग घरों या दफ्तरों, जहां भी थे, वहां से निकलकर सड़कों पर आने लगे. धीरे-धीरे भीड़ सड़कों पर नाचने लगी. क्लासिकल या कोई खास तरह का डांस नहीं, कुछ इस तरह के मूवमेंट जैसे हिस्टीरिकल लोगों में दिखते हैं. वे झूमते ही जा रहे थे, बिना किसी संगीत के. भीड़ कम होने की बजाए बढ़ती चली गई. लोग बिना खाए-पिए डांस कर रहे थे. बहुत से लोग बेहोश होकर गिरने लगे लेकिन डांस चलता रहा. फिर जैसे अचानक शुरू हुआ था, वैसे ही डांसिंग प्लेग एकाएक रुक भी गया. किसी को इसकी वजह पता नहीं लग सकी.

इसे क्लोरियोमेनिया कहा गया, जो ग्रीक शब्द कोरोस यानी नृत्य और मेनिया यानी पागलपन से बना है. बहुत से लोग इसे डांसिंग प्लेग भी कहने लगे क्योंकि प्लेग उस दौर की सबसे खतरनाक बीमारी थी, जो एक से दूसरे में फैलती ही चली जाती. चार देशों में एक साथ दिखने पर पड़ोस के देशों ने अपनी सीमाओं पर पहरा लगा दिया ताकि वहां की बीमारी उनके यहां न पहुंच जाए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जल्द ही सबकुछ सामान्य दिखने लगा.

15वीं सदी में जर्मनी के कैथोलिक चर्चों में शांति से रहती ननें अचानक गुस्सैल हो गईं. बिल्ली की तरह आवाज निकालते हुए वे एक-दूसरे को काटने-नोंचने लगीं. यहां तक कि हॉलैंड और रोम में भी नन्स एकदम से बदल गईं. हालात इतने बिगड़े कि देशों को खूंखार हुई ननों पर काबू के लिए आर्मी बुलानी पड़ी. जेएफ हैकर की किताब ‘एपिडेमिक्स ऑफ मिडिल एजेस’ में बताया गया है कि कैसे ननों में हुए बदलाव को पहले शैतान और फिर यूट्रस से जुड़ा हिस्टीरिया बता दिया गया.

बाद में कई मनोवैज्ञानिकों ने पड़ताल की और पाया कि ये सभी ननें गरीब घरों से थीं, जिन्हें जबरन चर्च के काम में लगाया गया था. किशोरावस्था में ही घरवालों से अलग बहुत सख्त जिंदगी मिली. शादी करने की मनाही हो गई. कुछ ऐसे मामले हुए, जहां नन्स ने भागकर शादी करनी चाही तो उन्हें मौत की सजा मिली. डरी हुई औरतों की रही-सही उम्मीद भी चली गई. भीतर का यही डर और गुस्सा अजीबोगरीब व्यवहार बनकर दिखने लगा.

साल 1518 में रहस्यमयी नाच एक बार फिर दिखने लगा. जर्मनी में एक महिला से शुरू हुए डांस में जल्द ही लोग शामिल होने लगे. सड़कें ब्लॉक हो गईं. कामधाम रुक गए. यहां तक कि सरकार को एक्शन लेते हुए सबको पकड़कर जेल में डालना पड़ा लेकिन डांस तब भी चलता रहा और फिर पहले की तरह ही एक दिन रुक गया.

ऐसा क्यों हुआ, इसपर पड़ताल चलती रही. कई अलग-अलग थ्योरीज आईं. किसी ने इसे ऊपरी साया कहा तो किसी ने दुश्मन देशों की साजिश. बाद में माना गया कि इस तरह की सारी ही घटनाएं मास साइकोजेनिक इलनेस का उदाहरण हैं. इसे मास हिस्टीरिया भी कहा जाता है. ये उन्हीं इलाकों या उसी तरह के लोगों पर असर करता है जो किसी न किसी वजह से परेशान हों और परेशानी कॉमन हो.

साल 1374 में हुए पहले डांसिंग मेनिया की पड़ताल पर पाया गया कि प्रभावित हुए चारों ही देश उससे कुछ पहले से भारी परेशानी झेलते रहे. राइन नदी में आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी, जिसमें घर-लोग और पशु भी बह गए थे. कई बीमारियां लगातार वार कर रही थीं, जैसे प्लेग, कुष्ठ और सिफलिस. ऐसे में एक ही परेशानी से जूझते लोग इसपर एक तरीके से प्रतिक्रिया देने लगे. नाचने-झूमने से चूंकि तनाव कम होता है, तो ये एक तरह की नेचुरल प्रतिक्रिया थी, जो देखादेखी पैदा होती है.

‘एपिडेमिक्स ऑफ द मिडिल एजेस’ में सिलसिलेवार ऐसी सारी घटनाओं और उनके पीछे के मनोवैज्ञानिक कारणों की बात की गई. हालांकि उस दौर के लोग डांसिंग मेनिया को पाप से जोड़ने लगे. कहा जाने लगा कि गलत काम करने वाले लोगों को शैतान डांस करने के लिए प्रेरित करता है ताकि वे नाचते हुए खत्म हो जाएं. हालांकि बाद के दौर में भी हिस्टीरिया के मामले आते रहे, जो अब तक चले आ रहे हैं. इसमें आमतौर पर कमउम्र लड़कियां या महिलाएं मरीज दिखती हैं. इसके पीछे भी मनोवैज्ञानिक वही वजह देते हैं, लंबे समय तक ट्रॉमा में रहना और भावनाओं को छिपाए रखना.

 

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