सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता को दी गर्भपात कराने की इजाजत, जानिए क्या है पूरा मामला
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 27 हफ्ते की गर्भवती रेप पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी है। मेडिकल रिपोर्ट में इस स्टेज पर भ्रूण को सुरक्षित तरीके से हटाने की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर भ्रूण जीवित रहता है तो अस्पताल उसे इनक्यूबेशन में रखकर बच्चे का जीवित रहना सुनिश्चित करेगा।
कोर्ट ने कहा कि बच्चे के जीवित रहने की स्थिति में यह सरकार की जिम्मेदारी होगी कि वह यह सुनिश्चित करे कि बच्चे को कानून के मुताबिक गोद लिया जाए। 19 अगस्त को एक विशेष सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस मामले को 23 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है, इस तथ्य के बावजूद कि मामले पर मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट 11 अगस्त को प्राप्त हुई थी।
कहा कि हाईकोर्ट को इसमें जल्दबाजी दिखानी चाहिए थी। इसके बावजूद इसे 12 दिन बाद सूचीबद्ध करने का आदेश दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़िता की दोबारा मेडिकल जांच कराने का आदेश दिया था, जिसके बाद मेडिकल रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई। दरअसल, 7 अगस्त को रेप पीड़िता ने अपने भ्रूण को हटाने की इजाजत मांगी थी। उस समय भ्रूण 26 सप्ताह का था। 8 अगस्त को गुजरात हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड का गठन कर 11 अगस्त तक रिपोर्ट तलब की थी।
11 अगस्त को मेडिकल रिपोर्ट मिलने के बाद मामले की अगली सुनवाई 23 अगस्त को तय की गई। इस बीच, 17 अगस्त को हाई कोर्ट ने भ्रूण को हटाने की याचिका खारिज कर दी, लेकिन अभी तक बर्खास्तगी का विस्तृत आदेश अपलोड नहीं किया है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि 11 अगस्त को मिली मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भ्रूण निकाला जाएगा तो रेप पीड़िता को कोई नुकसान नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चूंकि हाई कोर्ट का आदेश उसके पास नहीं है, इसलिए रेप पीड़िता की दोबारा मेडिकल जांच का आदेश दिया जाता है। कोर्ट ने 19 अगस्त को ही रेप पीड़िता की मेडिकल जांच का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल रिपोर्ट मिलने के बावजूद मामले को 11 दिन बाद सूचीबद्ध करने का आदेश आश्चर्यजनक है। आश्चर्य की बात है कि 17 अगस्त को याचिका खारिज करने का आदेश भी अभी तक अपलोड नहीं किया गया है।