आईवीआरआई में ओडिशा के पशु चिकित्सा अधिकारियों हेतु “रोग निदान और नियंत्रण में नई प्रगति” विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ
बरेली, 06 अक्टूबर । भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर में “रोग निदान और नियंत्रण में नई प्रगति” विषय पर ओडिशा राज्य के पशु चिकित्सा अधिकारियों के लिए एक 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आज शुभारंभ हुआ। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संस्थान के जैविक उत्पाद विभाग एवं संयुक्त निदेशालय (प्रसार शिक्षा) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है तथा इसका प्रायोजन ओडिशा सरकार द्वारा किया गया है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि एवं संयुक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा), डॉ. रूपसी तिवारी ने संस्थान के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस संस्थान की स्थापना वर्ष 1889 में पुणे में हुई थी। उन्होंने आगे बताया कि वर्तमान में आईवीआरआई में शैक्षणिक गतिविधियाँ अत्यधिक विस्तृत हो चुकी हैं। पहले जहाँ केवल एमवीएससी और पीएचडी कार्यक्रम ही संचालित होते थे, वहीं अब संस्थान में बीवीएससी, बी.टेक. बायोटेक्नोलॉजी, एमबीए (एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट), एमएससी (एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एवं स्टैटिस्टिक्स), तथा एमएससी (बायोइन्फॉर्मेटिक्स) जैसे कई नए डिग्री कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इसके अतिरिक्त बी टेक (डेयरी टेक्नोलोजी) शीघ्र शुरू होने जा रहा है। उन्होंने बताया कि लगभग 900 से अधिक विद्यार्थी संस्थान में अध्ययनरत हैं। बढ़ती छात्र संख्या के कारण छात्रावासों की व्यवस्था को लेकर चुनौतियाँ अवश्य हैं, किंतु संस्थान प्रशासन सभी प्रतिभागियों को सर्वोत्तम सुविधाएँ प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि “आईवीआरआई की पहचान केवल एक शोध संस्थान के रूप में ही नहीं, बल्कि एक उत्कृष्ट शैक्षणिक केंद् के रूप में भी तेजी से उभर रही है, जहाँ पशु विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और कृषि प्रबंधन के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रतिभाएँ तैयार की जा रही हैं।”उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे प्रशिक्षण के दौरान संस्थान की उपलब्धियों और सुविधाओं का अनुभव करें तथा यहाँ से प्राप्त ज्ञान को अपने-अपने राज्यों में पशु स्वास्थ्य एवं अनुसंधान विकास के लिए उपयोग करें। डॉ. तिवारी ने प्रशिक्षण के आयोजन हेतु ओडिशा सरकार के वेटरिनरी ऑफिसर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (VOTI) को वित्तीय सहयोग प्रदान करने के लिए आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर जैविक उत्पाद विभागाध्यक्ष, डॉ. रविकांत अग्रवाल ने बताया कि विभाग की स्थापना 1936 में की गई थी और यह संस्थान का सबसे प्राचीन विभाग है। विभाग पशु एवं कुक्कुट के आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोगों के लिए टीकों एवं नैदानिक उत्पादों के अनुसंधान, विकास, उत्पादन एवं प्रशिक्षण में निरंतर कार्यरत है। विभाग का देश में पशु रोग नियंत्रण और उन्मूलन में ऐतिहासिक योगदान रहा है। रिंडरपेस्ट रोग के पूर्ण उन्मूलन में इस विभाग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने बताया कि 1970 तक संस्थान 72 प्रकार के जैविक उत्पादों का उत्पादन कर न केवल देश की, बल्कि अफगानिस्तान, ईरान, श्रीलंका और चीन जैसे देशों की भी आवश्यकताएं पूरी करता था। वर्तमान में विभाग में ब्रुसेला एंटीजन, साल्मोनेल्ला एंटीजन एवं एंटीसीरा, ट्यूबरकुलिन एवं जोनिन पीपीडी और अन्य महत्त्वपूर्ण डायग्नोस्टिक एंटीजन का उत्पादन कर देशभर में आपूर्ति कर रहा है। वैक्सीन उत्पादन इकाई के उन्नयन (जीएमपी अनुपालन) के बाद पुनः वैक्सीन निर्माण आरंभ किया जाएगा। उन्होने कहा कि प्रशिक्षण में पशुओं को प्रभावित करने वाले रोगों की डायग्नोस्टिक तकनीकें, आणविक परीक्षण, बायोसेफ्टी, एएमआर, नेक्स्ट जेनरेशन डायग्नोस्टिक्स तथा अल्ट्रासोनोग्राफी जैसे विषय शामिल किए गए हैं। प्रतिभागियों को बीएसएल-3 प्रयोगशाला का भी अवलोकन कराया जाएगा।
कार्यक्रम का समन्वयन डॉ. कौशल किशोर रजक एवं डॉ. अजय कुमार द्वारा किया जा रहा है, जबकि समूचे प्रशिक्षण की रूपरेखा संस्थान के निदेशक डॉ त्रिवेणी दत्त एवं संयुक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा) डॉ. रूपसी तिवारी के मार्गदर्शन में तैयार की गई है। विभागाध्यक्ष ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि संस्थान “पशु चिकित्सा विज्ञान का मक्का और मदीना” के रूप में जाना जाता है और प्रतिभागियों का यहाँ का अनुभव निश्चित रूप से ज्ञानवर्धक रहेगा।
कार्यक्रम का संचालन, पाठ्यक्रम समन्वयक एवं जैविक उत्पाद विभाग के वैज्ञानिक, डॉ. अजय कुमार यादव द्वारा किया गया जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बबलू कुमार कुमार द्वारा दिया गया। इस अवसर पर डॉ सलाउद्दीन, डॉ अभिषेक सहित संस्थान के अनेक अधिकारी, वैज्ञानिक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

