आईवीआरआई में “जीवाणु टीकों का उत्पादन एवं मानकीकरण ” विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ
बरेली, 05 अगस्त। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर में कल “जीवाणु टीकों का उत्पादन एवं मानकीकरण” विषय पर ओडिशा राज्य के पशु चिकित्सा अधिकारियों के लिए एक 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संस्थान के जैविक उत्पाद विभाग एवं संयुक्त निदेशालय (प्रसार शिक्षा) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है तथा इसका प्रायोजन ओडिशा सरकार द्वारा किया गया है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि एवं संयुक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा), डॉ. रूपसी तिवारी ने संस्थान के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस संस्थान की स्थापना वर्ष 1889 में पुणे में हुई थी। तब से अब तक यह संस्थान पशु रोग नियंत्रण एवं उन्मूलन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। डॉ. तिवारी ने उल्लेख किया कि संस्थान ने रिण्डरपेस्ट जैसी विनाशकारी बीमारी के उन्मूलन में निर्णायक योगदान दिया है, जिसका प्रमाण रिण्डरपेस्ट पिलर के रूप में संस्थान के मुक्तेश्वर परिसर में स्थापित है। उन्होंने बताया कि संस्थान टीका निर्माण के माध्यम से आय अर्जित करने के साथ-साथ शोध, शिक्षण एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी सक्रिय है। विभिन्न राज्यों के पशुचिकित्सकों के लिए वर्ष भर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। डॉ. तिवारी ने प्रशिक्षण के आयोजन हेतु ओडिशा सरकार के वेटरिनरी ऑफिसर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (VOTI) को वित्तीय सहयोग प्रदान करने के लिए आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर जैविक उत्पाद विभागाध्यक्ष, डॉ. रविकांत अग्रवाल ने बताया कि विभाग की स्थापना 1936 में की गई थी और यह संस्थान का सबसे प्राचीन विभाग है। विभाग पशु एवं कुक्कुट के आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोगों के लिए टीकों एवं नैदानिक उत्पादों के अनुसंधान, विकास, उत्पादन एवं प्रशिक्षण में निरंतर कार्यरत है। वर्तमान में विभाग वैक्सीन निर्माण, स्केल-अप प्रक्रिया, अनुसंधान एवं शैक्षणिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
पाठ्यक्रम निदेशक, डॉ. बबलू कुमार ने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि यह कार्यक्रम सैद्धांतिक ज्ञान एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण का संतुलित समावेश है, जिसे अनुभवी विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण में बीज कल्चर की तैयारी, उसका संरक्षण, वैक्सीन फार्मुलेशन, लायोफिलाइजेशन, एवं बड़े पैमाने पर वैक्सीन निर्माण की तकनीकों को समाहित किया गया है।
प्रशिक्षण में गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज़ (GMP), बायोसेफ्टी, बायोकण्टनमेंट, एडजुवेंट चयन, स्थिरता परीक्षण एवं कोल्ड चेन प्रबंधन जैसे विषयों पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही, पशु टीका लाइसेंसिंग, दस्तावेजीकरण, बैच रिकॉर्ड प्रबंधन जैसे नियामकीय पहलुओं पर आधारित मॉड्यूल्स भी प्रशिक्षण का हिस्सा हैं, जो गुणवत्ता नियंत्रण एवं मानक अनुपालन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन, पाठ्यक्रम समन्वयक एवं जैविक उत्पाद विभाग के वैज्ञानिक, डॉ. अजय कुमार यादव द्वारा किया गया। इस अवसर पर जीवाणु एवं कवक विभागाध्यक्ष, डॉ. पी. दण्डपत सहित संस्थान के अनेक अधिकारी, वैज्ञानिक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।

बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट
