दिल्ली की सियासत में बड़ा उलटफेर : बीजेपी ने 48 सीटें जीती और आप को 22 सीटों पर संतोष करना पड़ा
नई दिल्ली। दिल्ली में 27 साल बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी ऐतिहासिक तो है ही, लेकिन यह बदलाव महज आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि दिल्ली की राजनीति की दिशा और दशा दोनों को नया मोड़ देने वाला साबित हो सकता है। बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर सत्ता की कुर्सी पर कब्जा कर लिया है, जबकि आम आदमी पार्टी को 22 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका, जिससे साफ है कि दिल्ली के मतदाताओं ने उसे पूरी तरह नकार दिया है।
इस चुनाव में AAP को सबसे बड़ा झटका लगा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके खास माने जाने वाले नेता मनीष सिसोदिया चुनाव हार गए। यह साफ दर्शाता है कि दिल्ली के मतदाता ने पार्टी नेतृत्व पर अविश्वास जताया है। सत्येंद्र जैन की हार भी इसी कड़ी में देखी जा सकती है। हालांकि, आतिशी ने जीत हासिल कर मुख्यमंत्री पद की गरिमा बचा ली, लेकिन क्या AAP इस हार से उबर पाएगी? यह सबसे बड़ा सवाल है।
बीजेपी की इस जीत के पीछे कई कारण हैं—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, शीशमहल और शराब नीति घोटाला जैसे मुद्दे, AAP सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी, और बीजेपी का आक्रामक चुनावी प्रचार। दिल्ली में लंबे समय से सत्ता से बाहर रही बीजेपी के लिए यह जीत केवल सरकार बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि एक बड़े बदलाव की भूमिका भी तय कर रही है।
दिल्ली सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (GAD) द्वारा सचिवालय को सील करने का आदेश दिया जाना केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि इसके सियासी मायने भी हैं। यह आदेश कहीं न कहीं यह इशारा कर रहा है कि सत्ता परिवर्तन के बीच कोई दस्तावेज या अहम जानकारी बाहर न जाए। लेकिन क्या यह बीजेपी के लिए सुगम सत्ता हस्तांतरण होगा या राजनीतिक खींचतान का नया अध्याय शुरू होगा?
दिल्ली में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला, जो यह दर्शाता है कि राजधानी में पार्टी की पकड़ अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है। यह कांग्रेस के लिए एक बड़े मंथन का समय है।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी सरकार अगले पांच साल स्थिरता से चला पाएगी? क्या AAP हार के बाद कोई नया सियासी दांव खेलेगी? क्या दिल्ली के मतदाता इस बदलाव से संतुष्ट रहेंगे? यह सब आने वाले दिनों में साफ होगा। फिलहाल, दिल्ली की राजनीति में एक नया युग शुरू हो चुका है।