Wednesday, November 12, 2025
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राज्यलखनऊ

आर्यावर्त की इस पवित्र अवध भूमि पर, इक्ष्वाकु वंश में, भगवान विष्णु के अवतार पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र का जन्म हुआ था।

 

अवध’ शब्द संस्कृत के ‘अयोध्या’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जिसके विरुद्ध युद्ध न किया जाये । देवताओं और ऋषियों की इस भूमि पर असंख्य मंदिर, पवित्र सरोवर और कुंड थे, लेकिन दुर्भाग्य से, अवध और आसपास के क्षेत्रों में बहुत कम मंदिर बचे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में 1000-1300 ई. के बीच आक्रमणकारियों ने सबसे अधिक क्षति पहुँचायी थी। हिंदू धर्म का गहन और समृद्ध दर्शन, जिसमें अपने देवता को मात्र जल अर्पित करने तक की भी परंपरा है, यह बताता है इतने विनाश और उत्पात के बाद भी, वे विपरीत परिस्थितियों और समय के अनुसार अपने अनुष्ठान अनवरत करते रहे और ये पवित्र स्थान अपनी पहचान बनाये रखने में सफल रहे ।

कुछ बचे हुए मंदिर जो किसी तरह आक्रमणकारियों की नजर से बच निकलने में समर्थ रहे, उनमें गुप्त काल के दौरान, 5वीं शताब्दी में निर्मित भीतरगाँव मंदिर भी सम्मिलित है। यह सबसे पुराना बचा हुआ टेराकोटा हिंदू मंदिर है। कानपुर के बेहटा बुजुर्ग गाँव में भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक और प्राचीन मंदिर ‘रेन टेम्पिल’ है। इसकी वास्तुकला अद्भुत है और इसमें बौद्ध स्तूप जैसी झलक मिलती है। इस प्रकार इस पुस्तक में लगभग 175 मंदिर हैं जिनका मनोरम वर्णन है और ये सभी रामायण और महाभारत की घटनाओं और दिव्य पात्रों से जुड़े हैं। इस पुस्तक में इनसे जुड़ी जनश्रुतियों का भी उल्लेख है ।

इस समय, सांस्कृतिक इकाई के रूप में अवध में लखनऊ, अयोध्या, देवीपाटन, प्रयागराज और कानपुर शामिल हैं । बिठूर, वाल्मीकि आश्रम से लेकर हरदोई में हत्याहरण तीर्थ तक और संगम कुंभ मेला प्रयागराज से लेकर पवित्र शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर, बलरामपुर तक कुछ ऐसे आलोकित प्रकाश स्तंभ हैं जो आस्थावान लोगों के लिये अमृत दायक हैं।

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