संभल शाही जामा मस्जिद का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, शुक्रवार को चीफ जस्टिस की बेंच करेगी सुनवाई
संभल: उत्तर प्रदेश के संभल की शाही जामा मस्जिद का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका में निचली अदालत के सर्वे के आदेश को चुनौती दी गई है। याचिका में मांग की गई है कि निचली अदालत के फैसले पर तुरंत रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में एक पक्ष शाही जामा मस्जिद के प्रबंधन का है, जबकि दूसरा पक्ष हरि शंकर जैन का है। मुस्लिम पक्ष ने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना से जल्द सुनवाई की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि यह असाधारण मामला है, इसलिए कोर्ट को असाधारण कदम उठाने चाहिए।
संभल मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि 1526 में मुगल शासक बाबर ने एक हिंदू मंदिर को तोड़कर शाही जामा मस्जिद बनवाई थी। यह जगह मूल रूप से हरिहर मंदिर की थी। ऐसे में मस्जिद का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को मिलना चाहिए।
क्या है पूरा विवाद?
बता दें कि, हिंदू पक्ष की ओर से अधिवक्ता हरि शंकर जैन ने याचिका दाखिल की थी, जिसे निचली अदालत ने स्वीकार करते हुए उसी दिन सर्वे के लिए अधिवक्ता नियुक्त करने का निर्देश दिया था। अधिवक्ता की नियुक्ति के बाद उसी दिन मस्जिद का सर्वे भी किया गया। अगले दिन भी प्रशासन की टीम सर्वे के लिए पहुंची। इसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़प में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 20 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंसा के बाद संभल के मामले ने तूल पकड़ लिया है।
मुस्लिम पक्ष का दावा
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि निचली अदालत ने उनका पक्ष सुने बिना ही फैसला सुना दिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जामा मस्जिद संरक्षित स्मारक है, जिसे 22 दिसंबर 1920 को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत अधिसूचित किया गया था। सरकार ने भी इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है और यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल है।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के दायरे से बाहर: कोर्ट
मुस्लिम पक्ष यह भी कह रहा है कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत 1947 से पहले बने धार्मिक स्थलों को संरक्षण दिया जाना चाहिए। हालांकि इससे पहले कोर्ट ज्ञानवापी और मथुरा मामले में याचिका स्वीकार कर चुका है। कोर्ट का मानना है कि ये मामले प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के दायरे से बाहर हैं।