धर्मलखनऊ

कभी जो गणेश पूजा “पेपर मिल के बप्पा” के नाम से जानी जाती थी, आज वही पूरे लखनऊ में “लखनऊ के राजा” के नाम से प्रसिद्ध हो चुकी है।

 

यह सिर्फ एक नाम नहीं, यह लोगों के विश्वास और प्रेम का प्रतीक है।   पर मिल कॉलोनी से लखनऊ के दिल तक की यात्रा पेपर मिल कॉलोनी लखनऊ की एक पुरानी, व्यवस्थित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध कॉलोनी मानी जाती है। यहाँ के लोग केवल पड़ोसी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सुख-दुख के सहभागी हैं। इसी एकता और सहयोग की भावना से जन्मी थी यह गणेश पूजा।

करीब 15 वर्ष पहले, कुछ घरों ने मिलकर बप्पा को बुलाया था— सिर्फ ₹2500 में आरंभ हुई वह छोटी-सी पूजा आज एक विशाल, भव्य, और पूरे शहर की पहचान बन चुकी है।

शुरू में इसे लोग “पेपर मिल के बप्पा” कहकर जानते थे। लेकिन जैसे-जैसे साल दर साल श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई, और पूरे शहर ने इसे अपनाना शुरू किया — यह पूजा बन गई संपूर्ण लखनऊ की पूजा। और तभी यह नाम पड़ा — “लखनऊ का राजा”।

अक्षय समिति — जो सपनों को हकीकत में बदलती है इस आयोजन की नींव और संचालन की ज़िम्मेदारी निभाती है अक्षय समिति — एक ऐसी टीम, जो दिखावे से दूर, समर्पण में यकीन रखती है। इस समिति ने कभी बड़े बजट, स्पॉन्सर या भारी चंदे पर निर्भर नहीं किया। यहाँ काम करने वाला हर व्यक्ति सेवक होता है, नेता नहीं। अक्षय समिति का उद्देश्य स्पष्ट है— “हर व्यक्ति को जोड़ना, हर घर को सहभागी बनाना, और बप्पा की सेवा को जीवन की प्रेरणा बनाना।”
बन रहा है देश का सबसे ऊँचा शिवलिंग पंडाल — पेपर मिल की मिट्टी से उठी एक नई गाथा

इस वर्ष अक्षय समिति एक ऐतिहासिक कार्य करने जा रही है  देश का सबसे बड़ा मानव-निर्मित शिवलिंग पंडाल  अक्षय समिति इस वर्ष जो कर रही है, वह पूरे देश के लिए एक मिसाल बनने जा रहा है —
एक ऐसा शिवलिंग पंडाल जिसका आकार, आस्था और सौंदर्य सभी को मंत्रमुग्ध कर देगा। यह केवल भव्यता नहीं है — यह एक संदेश है कि अगर एक कॉलोनी के लोग एक हो जाएँ, तो वे इतिहास भी रच सकते हैं।

इस वर्ष का आयोजन 27 अगस्त से 5 सितंबर 2025 तक — 10 दिवसीय भव्य आयोजन!

पूरे 10 दिन, बप्पा की पूजा, भजन, झांकियाँ, प्रसाद सेवा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्तों का सैलाब   यह लखनऊ के लिए एक अभूतपूर्व धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव होगा।

हर घर से बनता है प्रसाद — हर दिल से चढ़ती है भक्ति यह पूजा हर दृष्टि से खास है। यहाँ प्रसाद किसी कैटरिंग कंपनी से नहीं आता। हर दिन एक अलग परिवार अपने घर पर प्रसाद बनाकर बप्पा को अर्पित करता है और श्रद्धालुओं में बाँटता है।
यह परंपरा सिर्फ एक ‘सेवा’ नहीं — यह एक भावनात्मक कड़ी है, जो हर घर को बप्पा से जोड़ती है।

एक सरल लेकिन शक्तिशाली संदेश

इस पूरे आयोजन में न कोई प्रतिस्पर्धा है, न प्रदर्शन — सिर्फ एक संदेश है: “अगर हम एकजुट हों और सही दिशा में साथ चलें, तो कोई भी काम असंभव नहीं।” लखनऊ का राजा अब हर दिल में बसता है

“लखनऊ के राजा ” अब सिर्फ एक कॉलोनी के नहीं रहे   अब वो लखनऊ के हर मोहल्ले, हर गली, हर जाति, हर धर्म और हर दिल के बप्पा बन चुके हैं। अब यह पूजा सिर्फ एक आयोजन नहीं, एक आंदोलन है   जहाँ आस्था मिलती है समर्पण से, और सेवा मिलती है संस्कार से।*