आईवीआरआई में ‘जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी’ पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ

बरेली, 13 नवम्बर। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर–आईवीआरआई), इज्जतनगर में ‘बेसिक बायोटेक्नीक्स फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ पैथोजेन्स’ विषय पर 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। यह प्रशिक्षण आईसीएआर प्रायोजित नेटवर्क प्रोग्राम ‘एप्लिकेशन ऑफ जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी फॉर इम्प्रूवमेंट इन लाइवस्टॉक हेल्थ एंड प्रोडक्शन (NP-GET)’ के अंतर्गत आयोजित किया गया है।
मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. जी. साईं कुमार, पूर्व प्रमुख, पैथोलॉजी विभाग, आईवीआरआई एवं पूर्व प्रभारी पीएमई सेल ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। उन्होंने अपने संबोधन में जीनोम एडिटिंग के ऐतिहासिक विकास और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि अनुवांशिक विज्ञान की नींव 19वीं सदी में मेंडल द्वारा रखी गई थी, जिसने वंशागति के सिद्धांत को गणितीय रूप में प्रस्तुत किया। बाद के दशकों में, डीएनए की संरचना की खोज (1953) ने आनुवांशिकी को एक सशक्त वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित किया।
डॉ. कुमार ने आगे बताया कि डीएनए की खोज से लेकर आधुनिक जीनोम एडिटिंग और क्लोनिंग तक, यह विज्ञान निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। उन्होंने बताया कि विश्व में पशुओं के जीनोम में सफल परिवर्तन और क्लोनिंग के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि अब वैज्ञानिक नियंत्रित रूप से जीन संशोधन कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय में CRISPR-Cas जैसी तकनीकें जीन संशोधन के क्षेत्र में क्रांति ला रही हैं, जिससे मनुष्य, पशु और पौधों में वांछित गुणों का चयन और सुधार संभव हो सका है। आने वाले वर्षों में जीनोम एडिटिंग, आणविक जीवविज्ञान और जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यधिक संभावनाएँ हैं, और वर्तमान पीढ़ी के छात्रों को इस उभरते क्षेत्र में कौशल विकसित कर वैज्ञानिक अनुसंधान को नई दिशा देनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. एस. के. मेंदिरता, संयुक्त निदेशक, शैक्षणिक, आईवीआरआई ने की। अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति (NEP) तथा यूजीसी के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत इस प्रकार के प्रायोगिक एवं कौशल आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन अनिवार्य हो गया है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी अवसर है, जहाँ वे प्रयोगशाला में प्रत्यक्ष रूप से सीख सकते हैं और विशेषज्ञ शिक्षकों से खुलकर संवाद स्थापित कर सकते हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि सभी प्रतिभागियों को अधिकतम व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने हेतु प्रशिक्षण को विभिन्न समूहों या प्रयोगशालाओं में विभाजित किया जा सकता है। डॉ. मेहंदीरत्ता ने प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि उन्हें इस प्रशिक्षण का पूरा लाभ उठाना चाहिए और विषय से संबंधित सभी शंकाओं पर विशेषज्ञ शिक्षकों से चर्चा करनी चाहिए।
डॉ पी के गुप्ता कोर्स निदेशक ने बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत देश के विभिन्न राज्यों — पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, केरल, बिहार एवं ओडिशा के 22 प्रतिभागियों का चयन किया गया है, जिनमें वैज्ञानिक, सहायक प्रोफेसर, तकनीकी अधिकारी, शोध फेलो तथा छात्र शामिल हैं। उन्होंने आगे बताया कि ह प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘बेसिक बायोटेक्नीक्स फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ पैथोजेन्स’ विषय पर आयोजित किया गया है, जो आईसीएआर प्रायोजित नेटवर्क प्रोग्राम “एप्लिकेशन ऑफ जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी फॉर इम्प्रूवमेंट ऑफ लाइवस्टॉक हेल्थ एंड प्रोडक्शन (NP-GET)” के अंतर्गत संचालित है। उन्होंने बताया कि इस नेटवर्क परियोजना में आईसीएआर–आईवीआरआई अग्रणी संस्थान है तथा देश के विभिन्न आईसीएआर संस्थान सहयोगी केंद्रों के रूप में कार्य कर रहे हैं। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जीनोम एडिटिंग तकनीक के माध्यम से पशुधन के स्वास्थ्य और उत्पादन में सुधार लाना है। इस प्रशिक्षण के चार प्रमुख विषयवस्तु क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है पशु एवं पोल्ट्री उत्पादन में सुधार हेतु जीनोम एडिटिंग तकनीक का प्रयोग, रोगजनकों (pathogens) के आनुवांशिक नियंत्रण हेतु मूल जैव तकनीकों का अध्ययन, CRISPR/Cas प्रणाली के उपयोग से लक्षित जीन संपादन, तथा पशु स्वास्थ्य सुधार के लिए आणविक निदान (molecular diagnostics) और वैक्सीन विकास। उन्होंने बताया कि परियोजना के अंतर्गत भैंस, भेड़, बकरी, सूअर और मुर्गी जैसे पशुओं में मांसपेशीय वृद्धि (muscular growth) बढ़ाने के लिए MSTN gene का अध्ययन किया जा रहा है, जिससे पशुओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सकेगी।
पाठ्यक्रम समवन्यक डॉ बबलू कुमार ने इस अवसर पर कहा कि आईसीएआर-एनपी-जीईटी परियोजना के तत्वावधान में आयोजित इस दस दिवसीय कार्यक्रम का उद्देश्य, जीनोम प्रसंस्करण, जीनोम मेल्टिंग और पुनर्योगज प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में युवा शोधकर्ताओं के बीच मानसिक प्रतिष्ठा और व्यावहारिक दक्षता का निर्माण करना है। यह कार्यक्रम प्रतिभागियों को पैलेगन्स के आनुवंशिक हेरफेर की नवीनतम तकनीकों से सशक्त बनाता है, जिनमें नवीन डाइमेटिक्स और पशुधन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण चिकित्सीय तकनीकों के विकास की अपार क्षमता है।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ट वैज्ञानिक डॉ आई करुणा देवी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ सोनालिका महाजन द्वारा दिया गया । इस अवसर पर संयुक्त निदेशक केडराड, डॉ सोहिनी डे, डॉ मदन , डॉ प्रवीण सिंह सहित विभिन्न विभागों के वैज्ञानिक तथा अधिकारीगण मौजूद रहे। बरेली से अखिलेश चन्द्र सकसेना की रिपोर्ट

