उत्तर प्रदेश

आईवीआरआई में 21 दिवसीय शीतकालीन कार्यशाला का आयोजन

बरेली ,25 जनवरी। पशुओं के स्वास्थ्य को और बेहतर बनाने तथा नये जनरेशन के टीके एवं नैदानिकों को प्रयोगशाला से किसानों तक पहुँचाने के उद्देश्य से भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शिक्षा विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित 21 दिवसीय शीतकालीन कार्यशाला ”डवलपमेंट एण्ड ट्रांसलेशन ऑफ न्यू जेनरेशन वैक्सीन्स एण्ड डायग्नोस्टिक फार एनीमल हेल्थ फ्राम लैब टू लैण्ड“ का आयोजन किया गया।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश,उत्तराखण्ड, राजस्थान, आसाम, पटना, बीकानेर, नैनीताल, मध्य प्रदेश, बनारस, पालमपुर, पांडेचरी, केरल आदि राज्यों के 20 सहायक प्राध्यापकों तथा वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इस अवसर पर एक कम्पेडियम का भी विमोचन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं संस्थान निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त ने कहा कि यह शीतकालीन कार्यशाला अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय पर आयोजित की जा रही है जिसमें मुख्य रूप से पशुओं के विभिन्न रोगों, टीकों एवं नैदानिकों के निमार्ण में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जायेगी। उन्होंने कहा कि संस्थान ने पशुओं की महत्वपूर्ण बीमारियों के उन्मूलन में सहयोग किया है तथा यह संस्थान राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। डा. दत्त ने कहा कि टीकों की गुणवत्ता परीक्षण एवं नियंत्रण के लिए सस्थान प्रतिबद्ध है। संस्थान के उल्लेखनीय योगदानों को ध्यान में रखते हुए संस्थान के 125 वर्ष पूर्ण होने पर डाक टिकट भी जारी किया गया। डा. त्रिवेणी दत्त ने नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत चलाये जा रहे कोर्स के बारे में भी उपस्थित गणमान्य को जानकारी दी।
इस अवसर पर संयुक्त निदेशक, कैडराड ने बताया कि संस्थान के जैव प्रौद्योगिकी विभाग पशु रोग उन्मूलन में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। इस संस्थान ने पशुओं की रिण्डरपेस्ट बीमारी के रोग उन्मूलन में उल्लेखनीय भूमिका निभायी। इस अवसर पर संयुक्त निदेशक, शैक्षणिक डा. एस.के. मेंदीरत्ता ने भी पाठ्यक्रम को ज्ञानपयोगी बताते हुये इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की।
पाठ्यक्रम निदेशक डा. सोहिनी डे पाठ्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि इस शीतकालीन कार्यशाला में विभिन्न विषयों जैव प्रौद्योगिकी, पशुचिकित्सा माइक्रोबायलाजी, जैव रसायन, पशुचिकित्सा पारजैविकी, औषधि, विकृति विज्ञान, पशुचिकित्सा दैहिकी, पशुधन उत्पादन एवं प्रबन्धन, एनाटोमी पशु पुर्नरूत्पादन एवं गाइनकोलौजी, पशुजन स्वास्थ्य तथा जेव प्रौघोगिकी के क्षेत्र में कार्यरत 20 सहायक प्राध्यापक तथा वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। डा. सोहनी डे ने बताया कि इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को बायोइन्फारमेटिक तथा रिकाम्बीनेंट डीएनए टेक्नोलॉजी के माध्यम से नये टीकों एवं नैदानिकों के विकास तथा उनको किसानों तक कैसे पहुँचाया जाय इसके बारे मंे बताया जायेगा।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष तथा पाठ्यक्रम समन्वयक डा. सी मदन मोहन ने बताया कि इस प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को 25 व्याख्यान तथा 15 प्रयोगात्मक कराये जायेंगे। इसके अतिरिक्त उद्योग जगत से जु़ड़े उद्यमी भी अपना व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे।
कार्यक्रम का संचालन डा. फिरदौस द्वारा किया गया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डा. आर सरवनन द्वारा दिया गया। इस अवसर पर संयुक्त निदेशक, प्रसार शिक्षा डा.रूपसी तिवारी सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा अधिकारीगण उपस्थित रहे। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

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