जीवन में तरक्की लाने के साथ आर्थिक संकट दूर करते हैं ये चाणक्य के यह श्लोक
आचार्य चाणक्य ने पूरे जीवन कूटनीतिज्ञ के साथ-साथ अच्छे शिक्षक की भूमिका निभाई. चाणक्य ने लोगों को जीवन भर उपदेश दिए ताकि वे खुशहाल एवं समझदारी से जी सके. चाणक्य ने हर की परिस्थितियों का अध्ययन किया और जीवन के हर पहलू के लिए बारीकी से लोगों की मदद में जुटे रहे. अपने ग्रंथ चाणक्य नीति में आचार्य ने पति, पत्नी, भाई, बहन, माता, पिता के प्रति जिम्मेदारी और कर्तव्य के बारे में भी विस्तार से बताया है.
वैसे चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ में कई ऐसे श्लोकों का जिक्र किया है, जिनपर अगर अम्ल कर लिया जाए, तो जीवन को जीना काफी आसान हो सकता है. चलिए आपको बताते हैं इन श्लोकों के बारे में…
पहला श्लोक
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
इस श्लोक के जरिए चाणक्य कहते हैं कि जिस देश में सम्मान न हो और जहां रहने के साधन न हो, जिसमें कोई अपना न रहता हो और जहां शिक्षा भी न मिले, वहां रहना जीवन को व्यर्थ करने के समान है.
दूसरा श्लोक
माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी।
अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥
इस श्लोक के जरिए चाणक्य कहते हैं कि जिसके घर में माता न हो या न स्त्री प्रियवादिनी हो ऐसे व्यक्ति को वन में चले जाना चाहिए. ऐसे व्यक्ति के लिए घर औऱ वन दोनों समान है.
तीसरा श्लोक
आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि।
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ॥
सुख एवं सुविधाएं के लिए धन कितना आवश्यक है दुनिया में हर कोई जानता है. इसके बिना जीवन की कल्पना करना व्यर्थ माना जाता है. चाणक्य का श्लोक भी धन कितना जरूरी है ये बताने का प्रयास कर रहा है. श्लोक के अनुसार विपत्ति में धन का साथ चाहिए, तो इसकी रक्षा करनी जरूरी है. इसके अलावा धन से अधिक पत्नी की रक्षा करनी चाहिए. श्लोक कहता है कि अपनी सुरक्षा के समय धन का बलिदान करना पड़े तो इसमें देर नहीं लगानी चाहिए.