पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियां कम करने की तैयारी, क्या नए संकट को जन्म दे रही शरीफ सरकार?

नई दिल्ली. पाकिस्तान आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है। पिछले दिनों पूर्व प्रधानमंत्री इमरान की गिरफ्तारी के प्रयास के दौरान देशभर में हिंसा की घटनाएं हुईं। अब सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां कम करने वाले बिल को लेकर भी बवाल शुरू हो गया है। दरअसल, यहां की सीनेट ने विपक्ष के कड़े विरोध के बीच गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों में कटौती करने और पीठों के गठन के संबंध में विधेयक पारित किया। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख इमरान खान ने इस कदम के लिए संघीय सरकार की आलोचना की और कहा कि बिल का मकसद न्यायपालिका पर और दबाव डालना है।

पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को लेकर क्या हुआ है? पाकिस्तान में किस प्रक्रिया से पास होता है बिल? इसे बिल को लाने की वजह क्या है? प्रावधान क्या हैं? विरोध क्यों हो रहा है? सरकार क्या रुख है? बिल पर आगे क्या? आइये जानते हैं…

गुरुवार को पाकिस्तान के संसद के उच्च सदन सीनेट में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों में कटौती करने और पीठों के गठन के संबंध में विधेयक पारित हो गया। ‘सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर) बिल, 2023’ को देश के कानून और न्याय मंत्री आजम नजीर तरार ने पेश किया। उत्तरी वजीरिस्तान के सांसद मोहसिन दावर ने संशोधन पेश किए जिन्हें स्वीकार कर लिया गया। इससे पहले बुधवार को यह बिल संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली में पारित किया गया था।
किस प्रक्रिया से पास होता है बिल?

सेकंड रीडिंग: विधेयक के उद्देश्य और प्रमुख प्रावधानों पर मुख्य बहस होती है।
कमेटी स्टेज: संशोधनों (प्रस्तावित परिवर्तन) के प्रावधानों की प्रत्येक पंक्ति की विस्तृत जांच की जाती है। परिवर्तन करने या न करने का निर्णय लेने के लिए मतदान हो सकता है।
रिपोर्ट स्टेज: टेक्स्ट की आगे की जांच होती है। अधिक संशोधनों पर बहस की जाती है और यह तय करने के लिए कि परिवर्तन किए जाएं या नहीं, आगे मतदान होता है।
थर्ड रीडिंग: विधेयक की उपधाराओं के विचार के बाद, विधेयक के प्रभारी सदस्य एक प्रस्ताव पेश कर सकते हैं कि विधेयक (या विधेयक, यथासंशोधित, जैसा भी मामला हो) पारित किया जाए।
राष्ट्रपति की स्वीकृति: जब दोनों सदन अंतिम विषय वस्तु पर सहमत होते हैं, तो किसी भी विधेयक को संसद द्वारा सहमति दी जाती है और यह एक कानून या ‘संसद का अधिनियम’ बन जाता है।

कुछ दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति अली शाह और न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखैल ने सीजेपी की स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों पर सवाल उठाया था। बता दें, पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) उमर अता बंदियाल ने फरवरी महीने में पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में चुनाव कराने में देरी का स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि इस मामले में स्पष्टता की कमी प्रतीत होती है। पिछली पीटीआई सरकारों द्वारा अपने पांच साल के अनिवार्य कार्यकाल की समाप्ति से पहले अपनी विधानसभाओं को भंग करने के बाद दोनों प्रांतों में चुनाव होने हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त संशोधनों में वकील संरक्षण कानून पारित होने से 30 दिन पहले स्वत: संज्ञान लेते हुए दिए गए फैसलों के खिलाफ अपील करने का अधिकार विधेयक में शामिल किया गया। इसमें यह संशोधन भी शामिल है कि संविधान की व्याख्या करने वाले किसी भी मामले में पांच से कम न्यायाधीशों वाली पीठ नहीं होगी।

विधेयक में प्रावधान है कि तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश किसी भी मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई के बारे में फैसला करेंगे। इससे पहले, यह सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) का विशेषाधिकार था। विधेयक में फैसले को चुनौती देने के अधिकार के बारे में भी एक खंड शामिल है जिसे 30 दिनों के भीतर दायर किया जा सकता है और फिर दो सप्ताह में सुनवाई के लिए निर्धारित किया जाएगा।

इसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रत्येक खंड, अपील या मामले की सुनवाई और निपटारा वरिष्ठता के क्रम में मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीशों वाली समिति द्वारा गठित पीठ द्वारा किया जाएगा। विधेयक में यह भी उल्लेख किया गया है कि समिति का निर्णय बहुमत से होगा।

बिल सदन में पेश होने से पहले विरोधियों के निशाने पर आ गया। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख इमरान खान ने सीजेपी की विवेकाधीन शक्तियों को कम करने की कोशिश करने के लिए संघीय सरकार की आलोचना की और कहा कि इस कदम का मकसद न्यायपालिका पर और दबाव डालना है। उन्होंने कहा, ‘हममें से हर कोई न्यायिक सुधार चाहता है। लेकिन, उनका (सत्ताधारी पीडीएम पार्टियों का) एकमात्र लक्ष्य चुनाव से बचना है।’

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अन्य सीनेटरों ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान का उल्लंघन है क्योंकि उच्चतम न्यायालय से जुड़े मामलों को दो तिहाई बहुमत से संविधान में संशोधन से निपटाया जा सकता है। पीटीआई के सीनेटर अली जफर ने बहस के दौरान कहा, ‘आप साधारण बहुमत से पारित कानून के जरिए उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था को नहीं बदल सकते।’ उन्होंने यह भी मांग की कि विधेयक को मतदान के लिए रखने से पहले इस पर चर्चा के लिए सीनेट की द्विदलीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए।

बिल पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी अपना रुख स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा कि यदि संसद ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने के लिए कानून नहीं बनाया, तो ‘इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। वहीं न्याय मंत्री तरार ने कहा कि इस तरह के कानून की बार काउंसिल और बार एसोसिएशनों की लंबे समय से मांग थी। आगे उन्होंने कहा, ‘यह कहा जा रहा है कि संविधान संशोधन किया जाना चाहिए। मैं उन्हें कहना चाहता हूं कि संविधान संशोधन की कोई जरूरत नहीं है।’ सदन में अपने भाषण में विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर बिल देश की न्यायपालिका को सशक्त करेगा। उन्होंने इस बिल को ऐतिहासिक करार दिया।

यह बिल भले ही संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया है लेकिन यह अभी न्यायपालिका के दरवाजे तक पहुंच सकता है। पीटीआई के सीनेटर अली जफर ने एक बयान में कहा है कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

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