भांग पीने के बाद क्या होता शरीर में, कैसे और कितनी देर में चढ़ता है इसका नशा

 


नई दिल्ली. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को पूजा में भांग का धतूरा भी चढ़ाया जाता है. माना जाता है भांग भगवान शिव का पसंदीदा पेय था. इसलिए महाशिवरात्रि पर कई मंदिरों में बकायदा भांग की ठंडाई भी बनाई जाती है. शिवभक्त मजे लेकर इसे पीते हैं. होली के पर्व पर भी भांग के सेवन का रिवाज है.

वैसे हमारे देश में भांग का सेवन भारत में प्राचीन काल से हो रहा है. इसे हमारी संस्कृति का हिस्सा भी माना जाता है. ड्राइफूट्स के साथ भांग को पीसकर बनाई जाने वाली दूध की ठंडाई काफी लोकप्रिय है. कहा जाता है भांग का सरूर कुछ अलग ही होता है. जानते हैं कि भांग का नशा किस तरह बॉडी पर कम या ज्यादा असर दिखाता है. ये नशा कितनी देर तक बना रहता है.

होली के दौरान भांग का इस्तेमाल ठंडाई और मिठाई में ज्यादा होता है. भांग का दूसरे नशा की तुलना में अलग तरह का होता है, क्योंकि ये काफी हद तक शरीर के तंत्र पर आपकी पकड़ को खत्म कर देता है.

अब ये जानते हैं कि भांग की ठंडाई पीने या फिर मिठाई खाने से असर किस मात्रा में होता है. अगर भांग हल्की फुल्की मात्रा में ली गई है तो निश्चित तौर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं होगा और अगर हुआ भी ज्यादा समय के लिए नहीं.

चूंकि मेवों के साथ भांग को बारीक पीस कर बनाई गई ठंडाई काफी स्वादिष्ट होती है. लिहाजा अक्सर लोग इसे ज्यादा ही पी जाते हैं. इसके बाद वे जो भी काम करना शुरू करते हैं उसी को बार – बार करते हैं. कई बार उन्हें नशे के दौरान लगता है कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं लेकिन इसके बाद भी करते रहते हैं.

नशा चढ़ने के बाद मुंह और जीभ का टेस्ट कड़वा सा हो जाता है. तब कुछ भी खाने पर उसका टेस्ट महसूस नहीं होता. अक्सर सोने पर ऐसा लगता है कि आप बिस्तर से ऊपर उठकर उड़ते जा रहे हैं. अगर आपने भांग का ज्यादा नशा किया है तो ये दो से तीन दिनों तक भी आपको अपने असर में रख सकता है. कई बार इसका प्रभाव हफ्ते भर भी रह जाता है. कोई भी ये नहीं कह सकता है कि भांग का नशा तब कितनी देर में उतरेगा.

चूंकि भांग खाने से शरीर पर आपका नियंत्रण खत्म हो जाता है तो ये स्थिति कई बार इतनी खतरनाक भी हो जाती है कि आपको अस्पताल ले जाना पड़ सकता है. लिहाजा अगर होली पर भांग का सेवन कर भी रहे हों तो ख्याल रखे कि इसकी मात्रा ज्यादा नहीं हो.

भांग का नशा तुरंत नहीं होता. इसे असर में आने में दो से तीन घंटे लग जाते हैं. लेकिन ये जब चढ़ना शुरू करता है तो चढता ही जाता है और सुरूर बढने लगता है. ये वो स्थिति है जब दिमागी तौर पर शरीर का नियंत्रण खत्म होने लगता है. मसलन इसके नशे को चढ़ने के बाद लोग या तो लगातार हंसते रहते हैं या फिर रोते रहते हैं.

भांग के लगातार सेवन से साइड इफेक्ट होता है. इसका असर दिमाग पर पडता है. भांग का सेवन करने वालों में यूफोरिया, एंजाइटी, याददाश्त का असंतुलित होना, साइकोमोटर परफार्मेंस जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.
– भांग के सेवन से मस्तिष्‍क पर खराब असर पड़ता है
– गर्भवती महिलाओं से भ्रूण पर बुरा प्रभाव पड़ता है
– याददाश्त पर होता है इसका असर
– आंखों और पाचन क्रिया के लिए भी अच्‍छी नहीं
– जब भांग की पत्तियों को चिलम में डालकर इससे धूम्रपान किया जाता है तो इसके रासायनिक यौगिक तीव्रता से खून में प्रवेश करते हैं. सीधे दिमाग और शरीर के अन्य भागों में पहुंच जाते हैं.
– ज्यादा नशा मस्तिष्क के उन रिसेप्टर्स को प्रभावित करता है, जो खुशी, स्‍‍मृति, सोच, एकाग्रता, संवेदना और समय की धारणा को प्रभावित करते हैं.
– भांग के रासायनिक यौगिक आंख, कान, त्वचा और पेट को प्रभावित करते हैं.
– भांग के नियमित उपयोग से साइकोटिक एपिसोड या सीजोफ्रेनिया (मनोभाजन) होने का खतरा दोगुना हो सकता है.
– भूख में कमी, नींद आने में दिक्कत, वजन घटना, चिडचिडापन, आक्रामकता, बेचैनी और क्रोघ बढना जैसे लक्षण शुरू हो जाते हैं.
– यदि कोई व्यक्ति 15 दिन तक लगातार भांग का सेवन करे तो वह आसानी से मानसिक विकार का शिकार हो सकता है.

भांग एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है. उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है. भांग विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में प्रचुरता से पाई जाती है. भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं.

भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं. भांग की खेती प्राचीन समय में ‘पणि’ कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं.

भांग की चटनी का नाम सुनने पर लोग चौंक पड़ते हैं. जब भांग में इतना नशा होता है तो भांग की चटनी खाकर क्या असर होता होगा. लेकिन जब आप उत्तराखंड में बनने वाली भांग की चटनी खाएंगे तो उसके मजेदार जायके की तो तारीफ करेंगे और दूसरी बात ये इसका नशा बिल्कुल नहीं चढ़ता.

 

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया The Lucknow Tribune के  Facebook  पेज को Like व Twitter पर Follow करना न भूलें... -------------------------
E-Paper