रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय में “समाज- जीवन के विविध क्षेत्रों में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी का चिन्तन” विषयक गोष्ठी  संपन्न         

बरेली ,11 फरवरी। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ, महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली के तत्वावधान में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि (11 फरवरी) की पूर्व सन्ध्या पर शोधपीठ के सभागार में “समाज-जीवन के विविध क्षेत्रों में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी का चिन्तन” विषयक संगोष्ठी संपन्न हुई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि, प्रोफेसर रश्मि अग्रवाल, विभागाध्यक्ष, शिक्षा विभाग, तथा आमंत्रित वक्ता, डॉ. विमल कुमार, सहायक समन्वयक, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ, महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली रहे। इस अवसर पर दीनदयाल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विद्यार्थियों तथा शिक्षकों ने पुण्यस्मरण किया तथा अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजक, डॉ. प्रवीण कुमार तिवारी, समन्वयक, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा प्रस्तावना भाषण प्रस्तुत किया। डॉ. तिवारी ने कहा कि दीनदयाल जी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भारतीय परम्परा के अनुरूप युगानुकूल विचार प्रस्तुत किया है। दीनदयाल जी ने विविध अवसरों पर कौटिल्य को उद्धृत करते हुए कहा है कि सुख का मूल धर्म अर्थात कर्तव्यपालन है, धर्म का मूल अर्थ है, अर्थ का मूल राज्य है, तथा राज्य का मूल इन्द्रियजय है। अतः इन्द्रियजयी नेतृत्वकर्ताओं द्वारा राज्य का संचालन हो, जिससे की धर्मानुकूल अर्थ का उपार्जन हो, जिससे विविध कर्तव्यपालन संभव हो सके और अंततः समाज को सुख की प्राप्ति हो सके। दीनदयाल जी निरंतर कहते थे कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है, अतः शासन व्यवस्था का लक्ष्य लोकोपकार है।
इस अवसर पर आमन्त्रित वक्ता डॉ. विमल कुमार ने कहा कि वर्तमान समाज को मनुष्यता का बोध करते हुए पशुता से मुक्ति पाकर प्रभुता की ओर यात्रा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एकात्म मानवदर्शन एक ऐसी विचार चेतना है जिसमें व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा परिवार, परिवार से जुड़ा समाज, समाज से जुड़ा राष्ट्र, राष्ट्र से जुड़ा विश्व एवं विश्व से जुडी परमेष्टि सब समाहित होती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता व एकात्मता का आधार भारतीय सनातन संस्कृति है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वैश्विक हिंसा के इस दौर में दीनदयाल जी के विचार शान्ति व विकास का मार्ग सूझा सकते हैं।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रोफेसर रश्मि अग्रवाल ने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रत्येक राष्ट्र ऐसी शिक्षा चाहता है जो सांस्कृतिक मार्ग से होती हुई विकास के लिए प्रतिबद्ध हो। उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी के एकात्म मानव-दर्शन का भी मूल  वाक्य चरैवेति-चरैवेति था। उन्होंने राजनीति के माध्यम से देश हित के कार्य करने हेतु निरंतर प्रेरणा प्रदान की। उन्होंने समाज को देशभक्ति के संकल्प तथा एकात्मकता के भाव के साथ जोड़कर लगातार काम करने को प्रेरित किया।
कार्यक्रम का संचालन पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के सह समन्वयक डॉ. रामबाबू सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के सहायक समन्वयक, श्री रश्मि रंजन ने किया। इस अवसर पर डॉ. कीर्ति प्रजापति, डॉ. मीनाक्षी द्विवेदी, डॉ. अजीता सिंह तिवारी, दीपाली गुप्ता, रीता शर्मा सहित कई शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।
बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट
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