वेदांता एल्यूमिनियम ने बॉक्साइट शोधन की नई प्रक्रिया को कराया पेटेंट

आईआईटी खड़गपुर के सहयोग से विकसित यह अभिनव प्रक्रिया संसाधनों की दक्षता बढ़ाएगी और ऊर्जा की खपत में कमी लाएगी।

6 नवंबर 2023। भारत की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम उत्पादक वेदांता एल्यूमिनियम ने एक अभिनव प्रक्रिया विकसित करने की घोषणा की है जिसके द्वारा बॉक्साइट अवशेष घटाने में बहुत मदद मिलेगी। बाॅक्साइट अवषेष को आम बोलचाल में रेड मड कहा जाता है। यह एल्यूमिना रिफाइनिंग प्रक्रिया से निकलती है। नई विकसित प्रक्रिया बॉक्साइट अवशेष को 30 प्रतिशत के प्रभावषाली आंकड़े तक घटा देती है। इसके तहत आयरन की मात्रा को निकाल दिया जाता है व साथ ही उच्च एल्यूमिना यील्ड हासिल किया जाता है। नतीजतन एल्यूमिना रिफाइनिंग के दौरान बॉक्साइट से टोटल ऑर्गेनिक कॉन्टेंट को घटा दिया जाता है। इस प्रक्रिया से संसाधन दक्षता बढ़ जाती है और रिफाइनिंग के दौरान ऊर्जा की खपत कम होती है। यह अनुसंधान परियोजना कंपनी के अनुसंधान एवं विकास विभाग ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर के मेटलर्जिकल व मैटेरियल्स इंजीनियरिंग विभाग के सहयोग से संपन्न की है। इसमें लांजीगढ़, ओडिशा इकाई का विशेष योगदान रहा जहां वेदांता की विश्व स्तरीय एल्यूमिना रिफाइनरी है। यह अत्याधुनिक विकास कार्य कंपनी की प्रचालन उत्कृष्टता में वृद्धि करेगा तथा वैश्विक एल्यूमिनियम उद्योग पर इसका सतत प्रभाव होगा।

एल्यूमिनियम के लिए बॉक्साइट प्रमुख अयस्क है। इसकी रिफाइनिंग प्रक्रिया को बेयर प्रोसेस कहते हैं जिससे एल्यूमिना उत्पादित होता है। एल्यूमिना के इलेक्ट्रोलाइसिस से एल्यूमिनियम बनता है। इस रिफाइनिंग प्रक्रिया में बॉक्साइट अवशेष बतौर सह उत्पाद निकलता है। 1 किलोग्राम एल्यूमिनियम बनाने के लिए 2 किलोग्राम एल्यूमिना की आवष्यकता होती है। एल्यूमिना की यह मात्रा बनाने के लिए 6 किलोग्राम बॉक्साइट की खपत होती है। प्रक्रिया के दौरान 4 किलोग्राम बॉक्साइट अवशेष रह जाता है। इतनी बड़ी मात्रा में इस सह उत्पाद का सतत तरीके से प्रबंधन लंबे समय से एल्यूमिनियम उद्योग की बड़ी चुनौती है। वेदांता एल्यूमिनियम रेड मड को न्यूनतम करने के लिए सक्रियता से नवाचार में संलग्न है तथा इससे और ज्यादा एल्यूमिनियम हासिल करने के रास्ते तलाश रही है। कंपनी द्वारा विकसित नई क्रांतिकारी प्रक्रिया को प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक मान्य कर पेटेंट कराया गया है। वर्तमान में कंपनी एक पायलट संयंत्र स्थापित करने पर ध्यान दे रही है जहां इस प्रक्रिया को लागू व इसका मूल्यांकन किया जाएगा साथ ही इसके संभावित फायदों का निर्धारण भी होगा।

इस उपलब्धि पर वेदांता लिमिटेड के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी, -एल्यूमिना व्यवसाय श्री जी जी पाल ने कहा, ’’ वेदांता एल्यूमिनियम में सस्टेनिबिलिटी हासिल करने के सफर में प्रचालन दक्षता का हमारे लिए सर्वोच्च महत्व है। इस लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए हम अपने आंतरिक अनुसंधान एवं विकास पर सक्रियता से ध्यान कंेद्रित किए हुए हैं ताकि उद्योग की मौजूदा समस्याओं के हल के लिए तकनीक-चालित अभिनव समाधानों को आगे बढ़ाया जाए।’’

इस विकास कार्य के बारे में अपने विचार साझा करते हुए वेदांता लिमिटेड के मुख्य अनुसंधान एवं विकास अधिकारी-एल्यूमिनियम व्यवसाय डॉ अमित चटर्जी ने कहा, ’’हम अपने रिफाइनरी प्रचालन में बॉक्साइट अवशेष प्रबंधन के लिए अभिनव प्रक्रिया अमल में लाने की ओर अग्रसर हैं। यह एक खास उपलब्धि है जो बेहतर संसाधन दक्षता व ऊर्जा संरक्षण का मार्ग प्रशस्त करते हुए वैश्विक एल्यूमिनियम उद्योग को नया आकार देने में योगदान करेगी।’’

आईआईटी खड़गपुर में मेटलर्जिकल व मैटेरियल्स इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ चेन्ना राव बोरा ने कहा, ’’सस्टेनिबिलिटी लक्ष्यों के लिए अनुसंधान एवं विकास के प्रति वेदांता एल्यूमिनियम की प्रतिबद्धता सही मायने में प्रेरणादायक है। रेड मड में कटौती करना एल्यूमिनियम उद्योग की मुख्य चुनौतियों में से एक है। इसके लिए महत्वपूर्ण तकनीकी उन्न्यन की आवश्यकता है। यह प्रक्रिया आईआईटी खड़गपुर और कंपनी के सम्मिलित प्रयासों के जरिए विकसित की गई है। इससे न केवल रेड मड प्रबंधन में सुधार होगा बल्कि प्रक्रिया के दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी।’’

वेदांता एल्यूमिनियम देश में पहली ऐसी कंपनी है जो बॉक्साइट अवशेष के गारे से सारा पानी निकाल कर उसे प्रचालन उपयोग हेतु रिसाइकल करती है। इस तरह कंपनी ने जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) हासिल कर जल संरक्षण हेतु अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। बचे बॉक्साइट अवशेष को सघनता से शुष्क अवस्था में पैक कर इसका भंडारण खास तौर पर निर्मित एवं वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधित ठोस क्षेत्र में किया जाता है जिसे बॉक्साइट रेजिड्यू रिजरवॉयर कहते हैं। यह कंटेनमेंट पद्धति बॉक्साइट अवशेष को जमीन के भीतर मौजूद पानी में घुलने से रोकती है। वेदांता एल्यूमिनियम देश की पहली कंपनी है जिसने इस प्रोसेसिंग उद्देश्य हेतु बॉक्साइट रेजिड्यू प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया है। नई पद्धति के अमल से अवशेष उत्पादन को कम किया जा सकेगा।

इसके अतिरिक्त, वेदांता एल्यूमिनियम अनुसंधान संस्थानों के साथ सक्रिय भागीदारी में बॉक्साइट अवशेष के इस्तेमाल हेतु अभिनव प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में जुटी है। इन प्रौद्योगिकियों में शामिल है बॉक्साइट अवशेष को लाभकारी बनाना ताकि पृथ्वी के दुर्लभ तत्वों को समृद्ध किया जा सके, एल्यूमिना और आयरन मात्रा की प्राप्ति, टाइटेनियम तथा पृथ्वी के दुर्लभ तत्वों (जैसे स्कैंडियम) को निकालने व अलग करने की प्रक्रियाएं। यह कोशिश बेहद अहम है क्योंकि बॉक्साइट अवशेष में मूल्यवान धातुएं होती हैं जिनमें लौह, एल्यूमिना, पृथ्वी के दुर्लभ तत्व और टाइटेनियम डाइऑक्साइड शामिल हैं।

वेदांता लिमिटेड की इकाई वेदांता एल्यूमिनियम भारत की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम उत्पादक है। वित्तीय वर्ष 23 में 22.9 लाख टन उत्पादन के साथ कंपनी ने भारत के कुल एल्यूमिनियम का आधे से ज्यादा हिस्सा उत्पादित किया। यह मूल्य संवर्धित एल्यूमिनियम उत्पादों के मामले में अग्रणी है, इन उत्पादों का प्रयोग कई अहम उद्योगों में किया जाता है। वेदांता एल्यूमिनियम को एल्यूमिनियम उद्योग में डाउ जोंस सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स (डीजेएसआई) 2022 में दूसरी वैश्विक रैंकिंग मिली है, जो इसकी सस्टेनेबल डेवलपमेंट प्रक्रियाओं का प्रमाण है। देश भर में अपने विश्वस्तरीय एल्यूमिनियम स्मेल्टर्स, एल्यूमिना रिफाइनरी और पावर प्लांट्स के साथ कंपनी हरित भविष्य के लिए विभिन्न कार्यों में एल्यूमिनियम के प्रयोग को बढ़ावा देने और इसे ’भविष्य की धातु’ के रूप में पेश करने के अपने मिशन को पूरा करती है। www.vedantaaluminium.com

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर एक उच्च शिक्षण संस्थान है जिसे दुनिया भर में उद्योग हेतु योग्य पेशेवरों को तैयार करने के लिए जाना जाता है। शिक्षा में उत्कृष्टता प्रदान करने वाला यह संस्थान किफायती टेक्नोलॉजी नवोन्मेष विकसित करने में अग्रणी है। इसे 1951 में एक डिटेंशन कैम्प में बतौर इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल इम्पोर्टेंस स्थापित किया गया था। आज इस संस्थान का शुमार भारत के शीर्ष पांच संस्थानों में होता है और 2019 में इसे भारत सरकार द्वारा ’द इंस्टीट्यूट ऑफ ऐमिनेंस’ के खिताब से नवाज़ा था। यह संस्थान कई अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय मिशन प्रोजेक्ट्स में शामिल रहा है तथा रिसर्च आउटपुट में भी इसकी रैंकिंग निरंतर अच्छी रही है। यहां 19 शैक्षिक विभाग, 12 स्कूल, 18 सेंटर (जिनमें 5 सेंटर ऑफ ऐक्सीलेंस हैं) और 2 अकेडेमी हैं। वृक्षों से भरपूर यह परिसर 2100 एकड़ में फैला है और यहां 15,720 से अधिक विद्यार्थी पढ़ते हैं। वर्तमान में यहां 810 से अधिक संकाय, 880 से अधिक कर्मचारी और 1270 से ज्यादा प्रोजेक्ट हैं।

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