शरद पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने किया तीर्थों में स्नान चंद्रग्रहण सूतक काल में आश्रमों में हुआ मंत्र जाप

नैमिषारण्य (सीतापुर)। अश्विन मास की पूर्णिमा पर नैमिषारण्य तीर्थ में श्रद्धालुओं ने स्नान किया । चंद्रग्रहण के चलते शाम को चार बजे सूतक काल लग गया जिसके बाद नैमिष के देवालयों के पट बंद हो गए ।
शरद पूर्णिमा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन में गोपिकाओं के संग रास रचाया था। चंद्र ग्रहण के चलते विभिन्न मंदिरों में शरद पूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए । सुबह पावन चक्रतीर्थ और गंगा गोमती के राजघाट तट पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान किया । शाम चार बजे से ही चंद्र ग्रहण का सूतक काल लग जाने के कारण कई मंदिरों के पट बंद कर दिए गए और आश्रमों में साधु संतों ने जप अनुष्ठान किया । सूतक काल से पूर्व मंदिरों में आरती पूजन किया गया और भगवान का शयन कराया गया । चंद्रग्रहण रात्रि में एक बजे शुरू होगा इसके बाद चंदग्रहण के समाप्त होने के बाद मंदिरों की साफ सफाई एवं शुद्धिकरण किया जाएगा ।
पंडित रमेश शास्त्री ने बताया कि चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व दोनों है । चंद्र ग्रहण की घटना तब होती है जब सूर्य, पृथ्‍वी और चंद्रमा एक सीध में हों, खगोलीय विज्ञान के अनुसार ये केवल पूर्णिमा के दिन ही संभव होता है। इसी वजह से चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन होते हैं जबकि धार्मिक ग्रंथों में इसका कारण चंद्रमा को राहु का ग्रास होना बताया जाता है ।

“मंदिरों में साधु संतों ने किया मंत्र जाप”

नैमिष के आश्रमों में साधु संत अपनी झोली माला लेकर भगवान के पवित्र नाम का जाप करने लगे । ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के समय राहु द्वारा चंद्रमा को त्रास दिया जाता है। राहु के त्रास से बचाने के लिए मंत्र जाप किया जाता है ताकि ग्रहों को शांति मिले । श्रीरामानुजकोट मंदिर में वेद पाठी बालकों और आचार्यों ने पट बंद होने के बाद विष्णु सहस्रनाम, हनुमान चालीसा और विभिन्न मंत्रों का जाप किया ।

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