सुप्रीम कोर्ट ने 2014 की कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना की वैधता बरकरार रखी

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2014 कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना की वैधता को बरकरार रखा। प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया ने 22 अगस्त 2014 की अधिसूचना के प्रावधानों को कानूनी और वैध घोषित किया। 22 अगस्त 2014 की अधिसूचना संख्या जी.एस.आर 609 (ई) (अधिसूचना) में निहित प्रावधान कानूनी और वैध हैं।

2014 के संशोधन में अधिकतम पेंशन योग्य वेतन (मूल वेतन प्लस महंगाई भत्ता) को 15,000 रुपये प्रति माह पर सीमित किया था- और संशोधन से पहले यह 6,500 रुपये प्रति माह पर सीमित था। बेंच ने 2014 की योजना में इस शर्त को भी अमान्य करार दिया है जिसमें कर्मचारियों को 15,000 रुपये से अधिक के वेतन पर 1.16 प्रतिशत का अतिरिक्त योगदान देना होगा। संशोधित योजना के तहत अतिरिक्त योगदान को 1952 के अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत माना जाता है।

पीठ ने कहा कि पेंशन योजना छूट प्राप्त प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों पर उसी तरह लागू होनी चाहिए जैसे यह योजना बिना छूट वाले या नियमित प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों पर लागू होती है। अधिसूचना संख्या जीएसआर 609 (ई) 22 अगस्त 2014 द्वारा लाया गया पेंशन योजना में संशोधन छूट प्राप्त प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों पर उसी तरह लागू होगा जैसे नियमित प्रतिष्ठानों के कर्मचारी पर होता है।

पीठ ने कहा कि संशोधन के बाद की योजना की वैधता के संबंध में अनिश्चितता थी, जिसे तीन उच्च न्यायालयों के फैसलों से खारिज कर दिया गया था। इस प्रकार, सभी कर्मचारी जिन्होंने ऐसा करने के हकदार होने के बावजूद विकल्प का प्रयोग नहीं किया, अधिकारियों द्वारा कट-ऑफ तारीख की व्याख्या के कारण नहीं कर सके, उन्हें अपने विकल्प का प्रयोग करने का एक और मौका दिया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जो कर्मचारी स्पष्टता की कमी के कारण योजना में शामिल नहीं हुए, उन्हें विकल्प का लाभ उठाने के लिए और चार महीने का समय दिया जाएगा। योजना के पैराग्राफ 11 (4) के तहत विकल्प का प्रयोग करने का समय, इन परिस्थितियों में, चार महीने की और अवधि के लिए बढ़ाया जाएगा। हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए यह निर्देश दे रहे हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह आरसी गुप्ता बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त के 2016 के फैसले से सहमत है, जहां अदालत ने कहा कि योजना के तहत विकल्प का लाभ उठाने के लिए कोई कट-ऑफ तारीख नहीं हो सकती है। इसने यह भी स्पष्ट किया कि 1 सितंबर 2014 को संशोधन से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी, बिना संशोधित ईपीएस के पैरा 11 (3) के तहत विकल्प का प्रयोग किए बिना, योजना के तहत विकल्प के पात्र नहीं होंगे।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और केंद्र ने केरल, राजस्थान और दिल्ली के उच्च न्यायालयों के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें 2014 की योजना को रद्द कर दिया गया था।

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