रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय में उ0प्र0 इतिहास कांग्रेस का 33वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित
बरेली,23 मार्च।महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस का 33वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया गया। इस अधिवेशन का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केपी सिंह ने माँ शारदा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिरुद्ध देशपाण्डे, संस्थापक सदस्य प्रोफेसर ओम प्रकाश श्रीवास्तव, प्रोफेसर ए.के. सिन्हा, चेयरमैन प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल और आयोजन सचिव प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह यादव सहित कई गणमान्य विद्वान और शोधार्थी उ
उपस्थित रहे।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर केपी सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि इतिहास सभी विषयों में सबसे सुनिश्चित और समावेशी विषय है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इतिहास के स्रोतों का संरक्षण डिजिटल तरीके से किया जाना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसे सुरक्षित रखा जा सके। उन्होंने इतिहास को अंतरविषयक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि वैज्ञानिक विषयों को मानविकी के साथ जोड़कर शोध कार्य किया जाना चाहिए। इससे इतिहास लेखन में नए आयाम जुड़ेंगे और यह और अधिक समृद्ध होगा।
अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर अनिरुद्ध देशपाण्डे ने इतिहास लेखन में पूर्वाग्रह और विचारधाराओं से दूर रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों को प्राथमिक स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और तथ्यों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखना चाहिए। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं और शब्दों के अर्थ में समय के साथ हुए परिवर्तनों को सरल और सटीक शब्दों में समझाया। उनके अनुसार, इतिहास लेखन की कसौटी तर्क और वैज्ञानिकता होनी चाहिए।
प्रोफेसर ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के प्रारंभिक दौर में आने वाली चुनौतियों को सामने रखा। उन्होंने संगठन के विकास और इतिहास शोध के क्षेत्र में इसके योगदान पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर ए.के. सिन्हा ने अपने उद्बोधन में अध्यक्षीय घोषणा की और इतिहास शोध के नए आयामों को खोलने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल ने कहा कि यह अधिवेशन स्थानीय इतिहास लेखन के लिए एक कारगर मंच साबित होगा। उन्होंने इतिहासकारों से आह्वान किया कि वे स्थानीय इतिहास को अधिक गहराई से समझें और उसे दस्तावेजीकृत करें। आयोजन सचिव प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह यादव ने धन्यवाद ज्ञापन में सभी आचार्यगण, विद्वान, वक्तागण, अतिथि प्रतिभागीगण और शोधार्थीगण का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने आयोजन में सहयोग करने वाले सभी मित्रगण, कर्मचारीगण, विद्यार्थीगण और सहचर बंधुओं का विशेष अभिनंदन किया।
राधेश्याम स्मृति व्याख्यान में प्रोफेसर रश्मि चौधरी ने ग्रामीण मन को भारतीय राष्ट्रवाद की ऐतिहासिकता के साथ जोड़ा। उन्होंने ग्रामीण समाज के योगदान को रेखांकित किया और कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में ग्रामीण समाज की भूमिका अहम रही है। यासीन फातिमा व्याख्यान में प्रोफेसर मनीषा चौधरी ने बंजारे समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य को सरल और सहज तरीके से समझाया। उन्होंने इस समाज के योगदान और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला।
मंच का संचालन डॉ0 प्रिया सक्सेना ने कुशलतापूर्वक किया। इस अवसर पर प्रोफेसर हर्ष श्रीवास्तव, प्रोफेसर अवनीश मिश्र, प्रोफेसर दिग्विजय नाथ मौर्य, प्रोफेसर अनिल कुमार, प्रोफेसर एम.पी. अहिरवार, प्रोफेसर आराधना गुप्ता, प्रोफेसर डी.के. चौबे, प्रोफेसर आशुतोष प्रिय, प्रोफेसर रिफाक, प्रोफेसर वी.एन. वर्मा सहित कई शोधार्थी, अध्येता और कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
इस अधिवेशन ने इतिहास शोध के क्षेत्र में नए विचारों और दृष्टिकोणों को सामने रखा और इतिहासकारों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया।
बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट