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अमेरिका, सऊदी और चीन की नफरत का अंजाम पाकिस्‍तान के पूर्व पीएम इमरान की गिरफ्तारी! जानिए क्‍यों ऐसा कह रहे विशेषज्ञ

इस्‍लामाबाद: पाकिस्‍तान में एक हफ्ते से काफी अफरा-तफरी मची हुई है। नौ मई को इस्‍लाबाद हाई कोर्ट से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को गिरफ्तार किया गया। तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख इमरान के अरेस्‍ट होने के बाद अमेरिका की तरफ से सधी हुई प्रतिक्रिया दी गई। चीन ने इस पूरे मामले से दूरी बना ली है। वहीं सऊदी अरब ने इस पर कुछ न ही कहना बेहतर समझा। भारतीय इंटेलीजेंस ब्‍यूरो के पूर्व अधिकारी अविनाश मोहनाने ने वेबसाइट रेडिफ को दिए इंटरव्‍यू में पाकिस्‍तान और इमरान के हालातों पर खुलकर बात की। मोहनाने मानते हैं कि अमेरिका, सऊदी अरब और चीन इमरान को बिल्‍कुल भी पसंद नहीं करते हैं। उनका मानना है कि ये देश रणनीतिक तौर पर चुप रहकर इमरान की गिरफ्तारी का समर्थन भी करेंगे और उन्‍हें कभी दोबारा पीएम नहीं बनने देंगे।

कई लोग कयास लगा रहे हैं कि हो सकता है पाकिस्‍तान सेना ने इमरान की गिरफ्तारी अमेरिका, चीन या फिर सऊदी अरब के इशारों पर की हो। मोहनाने का कहना है कि इमरान इन सभी देशों के दुश्‍मन हैं। इनमें से कोई भी देश नहीं चाहता है कि वह सत्‍ता में वापस लौटे। उनका कहना है कि यह कहना कि इन देशों के इशारों पर इमरान को गिरफ्तार करने की साजिश रची गई और उन्‍हें गिरफ्तार किया गया, हो सकता है कि गलत हो। लेकिन ऐसी किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

उन्‍होंने कहा कि अमेरिका निराश है क्‍योंकि जिस समय अफगानिस्‍तान में तालिबान की वापसी हो रही थी, उस समय पीएम रहते हुए, इमरान ने सहयोग नहीं किया। बल्कि एक रैली में तो इमरान ने यह तक कह दिया कि आखिरकार तालिबान ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में सफलता हासिल कर ली। अमेरिकी सेनाओं के अफगानिस्‍तान से वापस जाने के बाद इमरान के इस बयान ने अमेरिका को काफी निराश किया था। अप्रैल 2022 में जब वह पाकिस्‍तान की सत्‍ता से बेदखल हुए तो इमरान ने इसका सारा दोष अमेरिका पर मढ़ दिया। इन सब बातों की वजह से अमेरिका, इमरान पर जरा भी भरोसा नहीं करता है।

मोहनाने ने बताया कि सबसे खास बात है कि पाकिस्‍तान, अमेरिका को 80 से 90 फीसदी तक टेक्‍सटाइल एक्‍सपोर्ट करता है। साथ ही वह अपनी वित्‍तीय जरूरतों के लिए अमेरिका पर काफी हद तक निर्भर है। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) में भी अमेरि‍का और दूसरे पश्चिमी देशों की सबसे बड़ी भागीदारी है। ऐसे में पाकिस्‍तान उन्‍हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता है। लेकिन लेकिन जब अमेरिकी अफगानिस्तान से वापस आ रहे थे तो इमरान खान काफी आक्रामक थे। मोहनाने के मुताबिक इमरान खान ने पाकिस्तानी लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अमेरिका विरोधी भावना का चालाकी से फायदा उठाया।

चीन भी इमरान खान के खिलाफ है क्योंकि वह अक्‍सर रैलियों में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बेटे हमजा पर चीनी कंपनियों की वजह से आरोप लगाते आए हैं। इमरान अक्‍सर यह कहते हैं कि चीनी कंपनियों को चीन पाकिस्‍तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में जो भी प्रोजेक्‍ट्स दिए गए, उसमें हमजा ने भारी रिश्‍वत ली है। जब वह पीएम थे तो उन्‍होंने हमजा के खिलाफ इन्‍क्‍वॉयरी शुरू कर दी। इसकी वजह से पिछले चार साल से सीपीईसी प्रोजेक्‍ट ठप पड़ा है। जबकि चीन हमेशा से यह चाहता है कि सीपीईसी प्रोजेक्‍ट में तेजी लाई जाए ताकि अमेरिका को पाकिस्तान से बाहर रखा जा सके।

वहीं तुर्की और मलेशिया की मदद से संयुक्त राष्‍ट्र (यूएन) में एक और इस्लामिक संगठन ब्लॉक शुरू करने की कोशिशों के कारण सऊदी अरब भी इमरान खान से नाराज है। वह इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) के लिए एक विकल्प बनाना चाहते थे। ओआईसी पर सऊदी अरब का दबदबा है। सऊदी अरब ने इसे अपना समझा। ऐसे में यह बात तो लाजिमी है कि इमरान खान को सत्‍ता में वापस आता देख सऊदी अरब जरा भी खुश नहीं होगा।

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