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एसआरएमएस रिद्धिमा मे थिएटर कल, आज और कल विषय पर परिचर्चा का आयोजन

बरेली,28 मार्च। एसआरएमएस रिद्धिमा में विश्व रंगमंच दिवस पर कल थिएटर कल, आज और कल विषयढ पर परिचर्चा आयोजित हुई। इसमें बरेली से ताल्लुक रखने वाले नामचीन रंगकर्मियों ने अपने विचार रखे। मनोरंजन के अत्याधुनिक संसाधनों से थिएटर को मिल रही चुनौती, संसाधनों के अभाव और थिएटर से बढ़ती दर्शकों की दूरी को सभी ने एक स्वर में स्वीकारा। साथ ही इसके उत्थाान के लिए सामूहिक प्रयास के साथ थिएटर में समयानुकूल बदलाव की भी बात की। रंगकर्मियों ने कहा कि सरकार या समाज की मदद से कुछ हद तक थिएटर को जिंदगी मिल सकती है लेकिन इसके उत्थान के लिए रंगकर्मियों को ही स्वयं आगे आना होगा। थिएटर को चमकाने के लिए खुद बदलाव करना और तपना ही कारगर उपाय है। क्योंकि कोई भी मदद कुछ समय के लिए मिल सकती है, लेकिन हमेशा के लिए नहीं।
विश्व रंगमंच दिवस पर गुरुवार (27 मार्च 2025) को एसआरएमएस रिद्धिमा में थिएटरप्रेमियों के बीच रंगकर्मी बिना किसी कास्ट्यूम और मेकअप के उपस्थित हुए। अभिनेता और ट्रेन टू पाकिस्तान सहित कई फिल्मों के निर्देशक दिल्ली निवासी अमर साह, अभिनेता व निर्देशक के साथ कठपुतली कलाकार शाहजहांपुर निवासी कप्तान सिंह कर्णधार, सात वर्ष की उम्र से रामलीला में मंच पर उतरने और 16 सौ से ज्यादा नाटकों में अभिनय करने वाले राजेंद्र घिल्डियाल, 25 वर्ष से थिएटर से जुड़ी और फिल्म अभिनेत्री शुभा भट्ट भसीन, अभिनेता, कहानीकार के साथ थिएटर की दूसरी विधाओं में पारंगत रंगकर्मी गुडविन मसीह, 22 वर्ष से थिएटर और सावधान इंडिया सहित टीवी के तमाम सीरियल में अभिनय करने वाली नीलम वर्मा और मंजे हुए कलाकार के साथ निर्देशक विनायक कुमार श्रीवास्तव ने थिएटर कल, आज और कल विषय पर बेबाकी से अपनी बात रखी। घिल्डियाल ने वर्तमान परिदृश्य में रंगमंच की स्थिति को स्पष्ट किया। कहा कि पहले और आज के थिएटर में जमीन आसमान का अंतर है। पहले थिएटर ही एकमात्र मनोरंजन का साधन था। रंगकर्मी सिर्फ तालियों के लिए थिएटर से जुड़ते थे। कम संसाधनों में काम चल जाता था, रोटी का संकट नहीं था। अब मनोरंजन के तमाम साधन उपलब्ध हैं। इसीलिए दर्शक थिएटर से दूर जा चुके हैं। इसीलिए थिएटर के साथ इससे जुड़ने वाला भी आज आर्थिक संकट में है। नीलम वर्मा ने भी थिएटर में पैसा न होने की बात स्वीकारी, लेकिन उन्होंने कहा कि इसके लिए थिएटर को भी व्यावसायिक होना पड़ेगा। अच्छे कंटेंट के साथ दर्शकों के सामने आना पड़ेगा। शुभा भट्ट ने कहा कि थिएटर दर्शकों से सीधे जुड़ने का माध्यम है। इसका रिस्पांस भी तुरंत है। इसके उत्थान के लिए रंगकर्मियों के साथ समाज के सभी वर्गों को जोड़ने की जरूरत है। थिएटर से दूर होते दर्शकों के संबंध में गुडविन मसीह ने बच्चों को थिएटर से जोड़ने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों को जोड़ने से उनके माता पिता और रिश्तेदारों का भी थिएटर में आना आसान होगा। इससे दर्शक मिलेंगे और कला समृद्ध होगी। थिएटर को ओटीटी और टीवी से मिल रही चुनौती और रंगमंच के महत्व को बढ़ाने के बारे में कप्तान सिंह कर्णधार ने थिएटर को स्कूलों से जोड़ने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि थिएटर सिर्फ अभिनय का क्षेत्र नहीं है। इससे जुड़ने के लिए लाइटिंग, साउंड, मेकअप के साथ अनेक क्षेत्र हैं। इसके साथ ही थिएटर को और गतिशील बनाना आवश्यक है। दर्शकों को नयापन देन के लिए नई स्क्रिप्ट जरूरी हैं। आज मुगल ए आजम की स्क्रिप्ट से काम नहीं चल सकता। इसके साथ ही थिएटर में प्ले का समय भी कम करना दर्शकों के लिए अच्छा होगा। कप्तान सिंह ने थिएटर में बैठ कर दर्शकों का इंतजार करने के बजाय थिएटर को खुद दर्शकों तक जाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि हमें दर्शकों की बात सुननी पड़ेगी और उन्हीं के अनुसार खुद को बदलना होगा। तभी थिएटर से दर्शक जुड़ेंगे और थिएटर फिर से लोगों के मनोरंजन का साधन बन सकेगा। अमर साह ने छोटे और बड़े शहरों में रंगमंच की भाषा और भविष्य के सवाल पर कहा कि रंगमंच भावों और रसों के संप्रेक्षण का माध्यम है। अभिव्यक्ति के लिए यहां भाषा की कोई बंदिश नहीं। भाषा कभी भावों के संप्रेक्षण में बाधा नहीं बनी। उन्होंने जोर देकर कहा कि थिएटर को खुद ही अपनी कमियों को दूर करना होगा, कोई दूसरा मदद करने नहीं आएगा। दूसरे मदद करेंगे भी तो वह मदद क्षणिक होगी। इससे थिएटर का कोई भला नहीं होने वाला। रंगकर्मी होने के नाते हमें खुद बदलना पड़ेगा। अपने लिए काम करना पड़ेगा। जब हम खुद तपेंगे तभी थिएटर चमकेगा। परिचर्चा का संचालन सौरभ गुप्ता ने किया। इस अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक एवं चेयरमैन देव मूर्ति जी, थिएटरप्रेमी और शहर के गणमान्य लोग मौजूद रहे। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट