इस गांव में चलते हैं प्राचीन नियम, यहाँ जाने पर सतयुग का अहसास होता है, यह 4 चीज़े बैन हैं
Ajmer Rajasthan: शहर की चकाचोंध में अब लोग परेशान हुए बोर होने लगे हैं। कुछ लोग यह यह सोचते हैं की काश पुराना वाला ज़माना वापस आ जाये। कुछ लोग तो सतयुग (Satyug Period) में रहने के ख्वाब देखते हैं। तो उन लोगो को सतयुग जैसा माहौल जरूर मिल सकता है। राजस्थान (राजस्थान) के अजर का देवमाली गांव आपको उस प्राचीन समय का अहसास जरूर करवा देगा। यहाँ ले लोगो का ऐसा मानना है की गांव के पहले के लोगो अर्थात पूर्वज के वचनों के चलते गांव में 4 चीजों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। पक्का मकान नहीं बनाना, शराब और मांस का सेवन नहीं करना। इसके अलावा केरोसिन का इस्तेमाल नहीं करने के वादे पर गांव वाले भी हामी भरते है।
बताया जाता है की इस देवमाली गांव (Devmali village) में लावड़ा गोत्र के गुर्जर समाज (Gurjar Samaj) के लोग निवास करते हैं। खेत्र के गुर्जर समाज के कुल देवता भगवान देवनारायण का मंदिर (Lord Devnarayan Temple) पहाड़ी पर स्थापित है। देवमाली गाँव आने के लिए राजस्थान के अजमेर आके सड़क मार्ग से यहाँ पहुंचा जा सकता हैं। इसके अलावा पूरे गांव में एक ही जाती और गोत्र के लोग रहते हैं, जिसके कारण वह भगवान देवनारायण (Bhagwaan Devnarayan) की पूजा करते हैं। उनका अपने देवता (God) पर पूरा विस्वास है। इस गांव की सारी की सारी जमीन भगवान देवनारायण के नाम पर है।
यह एक छोटा सा गाँव है और यहाँ 300 परिवार की बस्ती है। इस गाँव की जनसंख्या 2000 के आस पास है। अब यह भारत का एक छोटा सा गांव है, तो बिजली तो जरूर जाती ही होगी। गांव में बिजली का पावर कट होने पर मिट्टी के तेल अर्थात केरोसिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। बल्कि तिल्ली के तेल से दीपक या लालटेन जलाया जाता है।
यहाँ की एक दिनचर्या है। सभी गाँव वाले हर सुबह गांव की पूरी पहाड़ी के चारों तरफ नंगे पैर चक्कर लगाकर परिक्रमा करते हैं। इस पहाड़ी पर भगवान देवनारायण का मंदिर है। यहाँ ऐसी मान्यता है कि देवनारायण (God Devnarayan) जब इस गांव में आये, तो गाँव वालों के स्वागत और सेवा से बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने ग्रामीणों से वरदान मांगने को कहा, तो गांव वालों ने कुछ मांगा ही नहीं। कहा जाता है कि भगवन देवनारायण जाते समय ‘सुकून से रहना है’ कहकर चले गए। कहा की पक्की छत का मकान मत बनाना। गांव वाले आज भी उनकी बात को फॉलो करते हैं। लोग ऐसा बताते हैं की कई लोगों ने पक्की छत बनाने की कोशिश भी की, तो उन्हें कोई न कोई मुश्किल आ गई। कुछ बुरा होने लगा। ऐसे में ग्रामीण पक्की छत बनाने से कतरातें हैं।
घरों की छत चारे, घास फूस और केलू की बनी होती है। यहाँ आने वालों को यहाँ सतयुग के होने का अहसास होता है। यहाँ ग्रामीण शराब, मांस और अंडे को कभी भी टच भी नहीं करते हैं। इनका मानना है कि पक्की छत बनाने से गांव में आपदा आ सकती हैं। घर में टीवी, फ्रिज, कूलर और महंगी लग्जरी गाड़ियां उपलब्ध होते हुए भी कच्चे मकान दिखाई देते हैं।
गांव के उम्र दराज़ बूढ़े लोग बताते है की इस गांव में कभी भी चोरी नहीं हुई। एक बार चोर पहाड़ी पर बने मंदिर में प्रवेश कर गए थे। दान पेटी में रखे पैसे भी चुरा कर लिए थे, लेकिन भागकर आगे नहीं जा पाए। उन चोरों को लोगो ने बड़ी आसानी से पकड़ लिया। हैरान करने वाली बात यह है की इस गांव की पहाड़ी के सभी पत्थर झुके हुए हैं। यहां से कोई पत्थर नहीं ले जाता है।
गांव में पौराणिक मान्यता को सभी फॉलो करते हैं। देवनारायण भगवान में आस्था होने के चलते लोग मिट्टी और पत्थर से कच्चा मकान बनाते हैं और मकान की छत को केले के पत्ते और घास-भूसे से बनाते हैं। इस गांव के सक्षम लोग भी मिट्टी-पत्थर के बने कच्चे घरों में ही रहते हैं।