विदेश

दुनिया में डॉलर की जगह चीन की करेंसी में अब होगा बिजनेस? इस देश ने तो ले लिया फैसला

नई दिल्ली. अमेरिका के सुपरपावर होने का टैग खतरे में है. अपने डॉलर के दम पर 70 साल से दुनिया की बादशाहत संभाल रहे अमेरिका के बड़े बड़े बैंक डूब रहे हैं. वहीं अंतरराष्ट्रीय भुगतान में अमेरिकी मुद्रा डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिशें लगातार जोर पकड़ रही हैं. इन हालातों का फायदा उठाते हुए चीन अपनी करेंसी युआन के जरिए नया ग्लोबल ट्रेड लीडर बनने की आशंका में तेजी से आगे निकल रहा है.

दशकों से दुनियाभर में बड़े कारोबारी सौदे डॉलर में होते आए हैं. फिल्मों की बंपर ओवरसीज कमाई से लेकर दो देशों के बीच होने वाले रक्षा सौदों का पेमेंट भी लाखों-करोड़ों डॉलर में किया जाता है. एक आंकड़े के मुताबिक दुनियाभर के करीब 33% लोन अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं. लेकिन क्या आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा? इसकी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि हो सकता है एक दिन ऐसी सारी डीलें चीनी युआन या भारतीय रुपए में होने लगें? क्योंकि दुनियाभर में इस बड़े फेर-बदल की अटकलें लगाई जा रही हैं. ऐसी खबरों को अटकलें न कहा जाए तो ज्यादा सही रहेगा, क्योंकि कई देश अब अमेरिकी डॉलर पर निर्भर रहने के बजाए दूसरे देशों की करेंसी को तरजीह दे रहे हैं. इसे ही डी-डॉलराइजेशन कहा जा रहा है.

अर्जेंटीना ने अपनी संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए डॉलर के बजाय युआन में चीनी आयात के लिए भुगतान करने का ऐलान किया है. इसी महीने अप्रैल में, अर्जेंटीना ने डॉलर के बजाय युआन में करीब 1 अरब डॉलर के चीनी आयात का भुगतान करने का लक्ष्य रखा है. एक सरकारी बयान के मुताबिक आगे 79 करोड़ डॉलर के मासिक आयात का भुगतान भी युआन में किया जाएगा.

अर्जेंटीना के मंत्री सर्जियो मस्सा ने चीनी राजदूत, जू शियाओली के साथ विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियों की बैठक के बाद ये ऐलान किया है. यह फैसला ऐसे समय हुआ है जब ऐतिहासिक सूखे के कारण कृषि निर्यात में भारी गिरावट होने के साथ ये देश विदेशी मुद्रा की किल्लत से जूझ रहा है. इसे अमेरिका के लिए झटका माना जा रहा है कि क्योंकि ये दक्षिण अमेरिकी देश इससे पहले अमेरिका पर पूरी तरह से निर्भर था.

करीब एक दशक से अमेरिका के साथ बुरी तरह से ट्रेड वार में उलझे चीन ने दुनियाभर के बाजारों में अपनी जबरदस्त पकड़ बनाई है. चीन का सेंट्रल बैंक- पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (POBC), विदेशी निवेशकों के लिए युआन में वित्तीय संपत्तियां खरीदने की प्रक्रिया को आसान बना चुका है. चीन आसियान के सदस्य दस दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ स्थानीय मुद्रा में करेंसी सेटलमेंट कर रहा है. चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स से बातचीत में चीनी एक्सपर्ट्स ने कहा है कि युआन को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने की प्रक्रिया का संबंध दुनिया में अमेरिकी मुद्रा डॉलर का इस्तेमाल घटाने की चल रही कोशिशों से है.

विदेशी निवेशकों को मांग के मुताबिक युआन प्राप्त हो सकें, इसके लिए चीन के सेंट्रल बैंक ने बाजार में नकदी की मात्रा बढ़ाने का फैसला किया है. बैंक ने अपना अगला लक्ष्य विदेशों में युआन की उपलब्धता बढ़ाना रखा है. चीन अगर इस मंशा में कामयाब हुआ, तो उसका दूरगामी असर विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. चीनी बैंक ने वित्तीय संस्थानों के पास रिजर्व के रूप में विदेशी मुद्रा रखने की तय मात्रा में कटौती भी की है. इसे भी युआन के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में एक कदम माना गया है.

इकॉनमी के जानकारों का कहना है कि जब कोई करेंसी ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार करेंसी’ बनती है तो उसके पीछे सबसे बड़ा मूल कारण उस देश का ‘निर्यात’ होता है ‘आयात’ नहीं. चीनी निर्यात पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ा है. चीनी फैक्टर से इतर अब भारतीय रुपये की बात करें तो अब उसके भी इंटरनेशनल करेंसी बनने का अनुमान लगाया जा रहा है. रूस और श्रीलंका के बाद कई अफ्रीकी देशों समेत कई देश बहुत जल्दी भारत के साथ रुपये में कारोबार करने के लिए तैयार हैं. जर्मनी समेत 64 देश भारत के साथ Rupee में ट्रेड सेटलमेंट के लिए बातचीत कर रहे हैं. भारतीय रुपया कई देशों में स्वीकार किया जाता है.

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया The Lucknow Tribune के  Facebook  पेज को Like व Twitter पर Follow करना न भूलें... -------------------------
E-Paper