पूरी दुनिया में आने वाला है गेहूं का बड़ा संकट! रूस शुरू कर सकता है नए तरह का युद्ध
नई दिल्ली : दुश्मन को चित करने और अपनी ताकत दिखाने के लिए आज तोप, टैंक, मिसाइल, लड़ाकू विमान, पनडुब्बी, युद्धपोत वगैरह ही हथियार नहीं हैं। अनाज भी एक बड़ा हथियार है। खाद्यान्न आज जियोपॉलिटिक्स का बड़ा औजार है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच मॉस्को अब गेहूं का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने जा रहा है, जिसकी आंच पूरी दुनिया महसूस करेगी। रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पहले से ही ग्लोबल फूड सप्लाई गड़बड़ाई हुई है। पिछले साल खाद्यान्न की कीमतें तेजी से बढ़ी थीं और अब रूस जिस तरह गेहूं निर्यात पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा रहा है, उससे स्थिति और खराब होगी। रूस की कोशिश है कि गेहूं निर्यात में सिर्फ सरकारी कंपनियां या फिर उसकी घरेलू कंपनियां ही रहें ताकि वह एक्सपोर्ट को हथियार की तरह और ज्यादा कारगर इस्तेमाल कर सके। इस बीच दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स एक्सपोर्ट के लिए रूस में गेहूं खरीद को रोकने जा रहे हैं जिसके बाद ग्लोबल फूड सप्लाई पर रूस की पकड़ और मजबूत हो जाएगी।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, Cargill Inc और Viterra ने रूस से गेहूं का निर्यात बंद करने का ऐलान किया है। इन दोनों की पिछले सीजन में रूस के कुल खाद्यान्न निर्यात में 14 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। इनके जाने से दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक रूस का ग्लोबल फूड सप्लाई पर शिकंजा और मजबूत होगा। इनके अलावा आर्कर-डेनिएल्स मिडलैंड कंपनी भी रूस भी अपना कारोबार समेटने पर विचार कर रही है। लुइस ड्रेयफस भी रूस में अपनी गतिविधियों को कम करने पर विचार कर रही है। गेहूं का नया सीजन शुरू हो चुका है। 15 मई से रूस गेहूं की नई पैदावार का निर्यात शुरू कर देगा। अब इंटरनैशनल ट्रेडर्स के पीछे हटने से रूसी गेहूं निर्यात पर सरकारी और घरेलू कंपनियों का ही दबदबा होगा। वह और प्रभावी ढंग से इसका इस्तेमाल जियोपॉलिटिक्स के लिए कर सकेगा। वह कीमतों को भी प्रभावित करने की स्थिति में होगा। मध्य पूर्व और अफ्रीकी देश रूसी गेहूं के बड़े खरीदार हैं।
रूस अब गेहूं निर्यात के लिए गवर्नमेंट टु गवर्नमेंट डील पर जोर दे रहा है। सरकारी कंपनी OZK पहले ही तुर्की के साथ गेहूं बिक्री के कई समझौते कर चुकी है। उसने पिछले साल कहा था कि वह इंटरनैशनल ट्रेडर्स से छुटकारा पाना चाहती है और सीधे देशों को निर्यात करने की दिशा में काम कर रही है। रूस गेहूं का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हुए अपनी पसंद के चुनिंदा देशों को ही उसका निर्यात करेगा। इससे फूड सप्लाई चेन तो प्रभावित होगी ही, पिछले साल की तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी भी हो सकती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पिछले साल दुनियाभर में गेहूं और आटे की कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ था। कई देश खाद्य संकट के मुहाने पर खड़े हो गए तो कई जगह खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई चरम पर पहुंच गई। पिछले साल भारत में भी गेहूं और आटे की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी जिसके बाद सरकार ने गेहूं निर्यात रोक दिया था। भारत खुद बड़ा खाद्यान्न उत्पादक है लेकिन जो देश खाद्यान्न की जरूरतों के लिए बहुत हद तक आयात पर निर्भर हैं, वह बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। दुनिया में एक बार फिर गेहूं और आटे की कीमतें तेजी से बढ़ने की आशंका भी बढ़ गई है।
खाद्यान्न का हथियार के तौर पर इस्तेमाल दुनिया के लिए अच्छा संकेत तो बिल्कुल नहीं है। फूड वॉर की पहली बार 2007 में तब झलक दिखी थी जब सूखा, प्राकृतिक आपदा जैसी वजहों से दुनियाभर में खाद्यान्न का उत्पादन कम हुआ था। तब रूस, अर्जेंटिना जैसे अहम खाद्यान्न निर्यातक देशों ने घरेलू मांग को पूरा करने के लिए 2008 में महीनों तक खाद्यान्न के एक्सपोर्ट पर एक तरह से रोक दिया था। इसकी वजह से दुनिया में तमाम जगहों पर राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट पैदा हुआ था। संयोग से तब वैश्विक मंदी भी आई थी जिसकी वजहों में फूड वॉर को भी गिना जा सकता है।