अमेरिका की वजह से ईरान वाली गलती रूस में ना करे भारत! विशेषज्ञों ने किया आगाह

अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है. इसका एक प्रमुख कारण रूसी तेल की कीमत अन्य निर्यातक देशों की तुलना में कम होना है. भारत के इस कदम को लेकर अमेरिका, जापान और ब्रिटेन जैसे देश कई बार चेतावनी भी दे चुके हैं. लेकिन भारत इन चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखा है. वर्तमान में रूस भारत के लिए नंबर 1 तेल सप्लायर है.

साल 2019 से पहले ईरान भी भारत के लिए प्रमुख तेल निर्यातक देश था. ईरान भी भारत को रियायती कीमतों पर कच्चा तेल निर्यात करता था. लेकिन अमेरिकी सत्ता में डोनाल्ड ट्रम्प के आते ही ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए. ट्रम्प ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को भी रद्द कर दिया. अमेरिका ने ईरान से व्यापार करने वाले देशों को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी.

ट्रम्प ने यहां तक कह दिया था कि अगर भारत तय समय सीमा के बाद भी ईरान के साथ व्यापार करना जारी रखता है, तो अमेरिका भारतीय पेट्रोकेमिकल कंपनी पर प्रतिबंध लगा देगा. अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया. पिछले चार सालों से भारत ने ईरान से कच्चे तेल का आयात नहीं किया है.

जिस अमेरिकी चेतावनी के बाद भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया था. वहीं, अमेरिका लगभग पिछले एक साल से रूस से तेल नहीं खरीदने की अपील और कई बार चेतावनी भी दे चुका है. लेकिन अमेरिकी चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए भारत रूस से तेल खरीद रहा है. ऐसे में कूटनीति विशेषज्ञ अगाह कर रहे हैं कि भारत को ईरान के मामले से सबक सीखने की जरूरत है.

ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ऐसा संभव है कि ट्रम्प की तरह ही बाइडेन के कड़े रवैये के बाद भारत, ईरान की तरह ही रूस से भी तेल खरीदना बंद कर देगा? इसका उत्तर ईरान और रूस के साथ भारत के द्विपक्षीय तेल व्यापार के तुलनात्मक रुझानों से समझा जा सकता है.

ब्रसेल्स स्कूल ऑफ गवर्नेंस में विदेश नीति रिसर्चर और कूटनीति और वैश्विक प्रशासन में मास्टर कर रहे के. ए. धनंजय कहते हैं, “रूस से ऊर्जा आयात 2022 से लगातार बढ़ रहा है. यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस ने रियायती कीमतों पर भारत को तेल बेचने की पेशकश की. भारत इस मौके का फायदा उठाते हुए एक साल के भीतर ही रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया. रूस से ऊर्जा आायत को लेकर भारत अभी भी आशान्वित है. लेकिन रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध और ऊर्जा मार्केट में कीमतों की उतार-चढ़ाव को देख भारत चिंतित है. ऐसी स्थिति में ईरान के साथ हुए व्यापार अनुभव भारत के लिए एक सबक के तौर पर है.”

दरअसल, रूस की तरह ईरान भी कभी भारत के लिए तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश हुआ करता था. 1979 की ईरानी क्रांति के बाद लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ईरान से सालान लगभग 10 अरब डॉलर से अधिक का तेल आयात करता था. लेकिन 2019 में अमेरिका सत्ता में ट्रम्प के आने के बाद भारत को अपने हितों से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा. और अंततः भारत को ईरान से तेल खरीद बंद करना पड़ा.

के. ए. धनंजय आगे लिखते हैं, “2019 से पहले ईरान हो या वर्तमान में रूस हो, दोनों देशों के साथ भारत के तेल व्यापार का प्रमुख कारण तेल की रियायती कीमत है. पहले ईरान ने भारत को रियायती कीमतों पर कच्चा तेल निर्यात करने की पेशकश की थी, जिससे धीरे-धीरे ईरान भारत के लिए प्रमुख तेल सप्लायर बन गया था. उसी तरह रूस ने भी भारत को रियायती कीमत पर तेल निर्यात की पेशकश की. इसके बाद धीरे-धीरे रूस भारत के लिए नंबर 1 ऑयल सप्लायर बन गया.

रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत के ऑयल मार्केट में रूस का योगदान 1 प्रतिशत से भी कम होता था. 2021 में भारत का आयात बमुश्किल लगभग 5 अरब डॉलर था. लेकिन कच्चे तेल की कीमत में लगभग 30 से 35 डॉलर प्रति बैरल की छूट मिलने के बाद यह आयात लगभग 34.6 अरब डॉलर पार कर गया. पिछले साल की तुलना करें तो यह लगभग सात गुना है. इससे स्पष्ट है कि कीमतों में छूट के कारण भारत रूसी तेल की ओर आकर्षित हुआ.

उन्होंने आगे कहा, “दूसरी बात यह है कि ईरान और रूस दोनों पर लगाए गए प्रतिबंध का बैकग्राउंड भारत के लिए लगभग समान ही है. जिस तरह से आर्थिक प्रतिबंध के कारण अभी रूस से व्यापार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. उसी तरह ईरान के साथ भी व्यापार करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. जिस तरह से अभी भारत को भुगतान, शिपिंग और इंश्योरेंस संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ईरान के साथ व्यापार करने में भी उसी तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ रहा था.

भारत ने उस वक्त अमेरिका से बातचीत करने की पूरी कोशिश की थी. लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को किसी भी तरह की रियायत देने से इनकार कर दिया था. ट्रम्प ने यहां तक कह दिया था कि अगर भारत तय समय सीमा के बाद भी ईरान के साथ व्यापार जारी रखता है, तो अमेरिका भारतीय पेट्रोकेमिकल कंपनी पर प्रतिबंध लगा देगा.

के. ए. धनंजय आगे लिखते हैं,”पश्चिमी देशों की ओर से रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध के बावजूद भारत रूस से तेल आयात कर रहा है. लेकिन यह बात बिना किसी संदेह के कही जा सकती है कि ईरान के साथ हुए व्यापार अनुभव भारत के लिए सबक की तरह है. ईरान के साथ भारत का उतार-चढ़ाव भरा व्यापारिक अनुभव रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते का रियलिटी चेक है.

हालांकि, रूस के साथ भारत का मल्टी डायमेंसनल स्ट्रैटजिक रिलेशनशिप ईरान की तुलना में ज्यादा मजबूत और गहरा है. लेकिन सच्चाई यह भी है कि पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध को भारत की ओर से लगातार नजरअंदाज करना पूरी तरह से फुल-प्रूफ नहीं है.

भारत आज भले ही प्रभावी तौर पर पश्चिमी देशों के साथ सौदेबाजी करने और सस्ता रूसी तेल खरीदने में सक्षम है. लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं है कि पश्चिमी देश भविष्य में भारत के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते हैं. विशेष रूप से एक-दूसरे को प्रतिबंधित करने और बदला लेने के युग में.

कूटनीति और वैश्विक प्रशासन में मास्टर कर रहे के. ए. धनंजय आगे कहते हैं कि रूस से भारत के तेल आयात को लॉन्ग टर्म वाली डील नहीं कहा जा सकता है. इस डील को केवल कीमत के मामले में मार्केट च्वाइस के रूप में देखा जा सकता है. अगर हकीकत समझी जाए तो ईरान और रूस दोनों देशों से भारत के कच्चा तेल खरीदने का कारण आर्थिक प्रतिबंध का सामना कर रहे देशों के साथ अपने संबंधों को महत्व देना नहीं बल्कि, उनके द्वारा दी जाने वाली छूट है. रूस से तेल खरीद में रियायती कीमत एक अहम फैक्टर की तरह काम कर रहा है.

अगर भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखना चाहता है, तो भारत की पहली और सबसे महत्वपूर्ण थमिकता खुद को प्रतिबंध के जोखिमों से अलग करना होनी चाहिए. ईरान के साथ व्यापार अनुभव से भारत को यह समझना चाहिए कि रूस पर लगे प्रतिबंध जल्द समाप्त नहीं होने वाले हैं. भारत अभी जिस तरह से पश्चिमी प्रतिबंधों को बायपास करते हुए रूस से तेल आयात कर रहा है. इससे भारतीय कंपनियों पर हमेशा प्रतिबंध का खतरा मंडराता रहेगा. ऐसे में रूस और भारत दोनों देशों को व्यापार करने के लिए आउट ऑफ बॉक्स सोचने की जरूरत है. दोनों देशों के बीच व्यापार का भविष्य रुपया-रूबल मैकेनिज्म निर्धारित करेगा.

 

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