कहां होता है ट्रेन का पेट्रोल पंप, कैसे भरा जाता है इंजन में डीजल, कितना देता है माइलेज?

 


नई दिल्ली. देश में वैसे तो बड़ी तेजी से ट्रेन के इंजनों को डीजल की बजाय इलेक्ट्रीसिटी से चलने वाला बनाया जा रहा है. इसके लिए रेल लाइनों का विद्युतीकरण भी जोरों पर है. हालांकि, अब भी कई ट्रेनें पूर्ण या आंशिक रूप से डीजल से चलाई जाती हैं. क्या आप जानते हैं कि इन ट्रेनों को चलाने के लिए डीजल कहां भरा जाता है. इन ट्रेनों का पेट्रोल पंप कहां होता है. इन ट्रेनों को ईंधन देने के लिए किसी विशेष पेट्रोल पंप या यार्ड में ले जाने की जरूरत नहीं होती है. ये काम स्टेशन पर ही हो जाता है.

दरअसल, स्टेशन पर ही इंजन में डीजल भरने के लिए पाइन लाइन लगी होती है. यह पाइप पटरियों के ठीक बगल में होती है ताकि गाड़ी वहां खड़ा कर आराम से डीजल भरा जा सके. पंप को छुपाने के लिए एक स्टील का बॉक्स बना होता है जिसकी चाबी रेलवे के उस कर्मचारी के पास होती है जिसे यह डीजल भरने का काम सौंपा गया है. बॉक्स खोलने के बाद भी पंप को चालू करने के लिए विशेष औजार केवल उस कर्मचारी के पास ही होता है. इंजन में पाइप लगाकर ठीक उसी तरह डीजल भरा जाता है जैसे किसी आम वाहन में पेट्रोल डाला जाता है. डीजल की टंकी के पास एक पैमाना लगा होता है जिसमें दिखता है कि कितना डीजल भर चुका है.

किसी भी ट्रेन के उद्गम स्थल यानी शुरुआती स्टेशन पर एक बार उसका टैंक भरा जाता है. छोटी दूरी की यात्राओं के लिए पहली बार में भरा गया डीजल ही काफी होता है. हालांकि, अगर ट्रेन को लंबा सफर तय करना हो तो इंजन में किसी और स्टेशन पर डीजल जाता है. मसलन दिल्ली से बिहार जाने वाली कई गाड़ियों में पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन पर दोबारा डीजल डाला जाता है. ट्रेन के इंजन में डीजल की क्षमता 5 से 6 हजार लीटर होती है. अगर डीजल 1500 लीटर से नीचे आता है तो उसे किसी नजदीकी स्टेशन पर रीफिल किया जाता है.

यह अलग-अलग ट्रेनों पर निर्भर करता है कि इंजन एक लीटर में कितने किलोमीटर चलेगा. 12 या 24 कोच वाली पैंसेजर ट्रेन का इंजन 6 लीटर में केवल 1 किलोमीटर ही चलता है. वहीं, 12 डिब्बे वाली एक्सप्रेस ट्रेन का इंजन 4.5 लीटर में ही 1 किलोमीटर तक चल जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक्सप्रेस ट्रेन में बार-बार ब्रेक नहीं लगते और कम डीजल खर्च होता है.

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