न सिर पर पिता का हाथ-भूखे रहकर रेल में की पढ़ाई-कठिन तपस्या कर शशांक बनें IAS अफसर

भारत की कुछ सबसे प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षाओं में एक मानी जाती है यूपीएससी की सिविल सर्विसेस. इस परीक्षा को पास करने में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. लोग कोचिंग से लेकर घंटो सेल्फ स्टडी करने तक बहुत कुछ करते हैं तब कहीं जाकर उनका चयन होता है. ऐसे में यूपी के मेरठ को बिलांग करने वाले शशांक मिश्रा स्टूडेंट्स के लिये प्रेरणास्त्रोत हैं.

शशांक ने जिन हालातों में आईएएस की परीक्षा न केवल पास की बल्कि पांचवी रैंक भी हासिल की वह काबिले-तारीफ है. शशांक के पास कोई सुख सुविधा तो छोड़ो खाने को भरपेट खाना तक नहीं था फिर भी वह दिन रात मेहनत करके न सिर्फ अपनी फीस भर रहे थे साथ ही परिवार की जिम्मेदारी भी उठा रहे थे.

आइये जानते हैं उनके इस सफर की कहानी.

शशांक की शुरुआती जिंदगी

उनके परिवार में उनके अलावा तीन भाई और एक बहन तथा माता – पिता थे. सबकुछ सामान्य तरीके से चल ही रहा था कि शशांक जब कक्षा 12वीं में थे तो उनके पिता की असमय मृत्यु हो गयी. शशांक के पिता कृषि विभाग में डिप्टी कमिशनर के पद पर थे. पिता की मृत्यु के बाद पढ़ाई किनारे रह गयी और परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गयी.

इस छोटी सी उमर में जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए पर उनके पास इन जिम्मेदारियों को ओढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. वे हमेशा से ही आईआईटी की परीक्षा देना चाहते थे. पिता की मौत के बाद भी उन्होंने अपने इस सपने को ठंडे बस्ते में नहीं डाला और आईआईटी प्रवेश परीक्षा में 137वीं रैंक पाकर पास हुये. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से बीटेक करने के बाद शशांक को एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गयी. जिंदगी थोड़ा ढ़र्रे पर आती हुयी दिखी.

दिल्ली अभी दूर थी

उन्होंने शशांक ने आईआईटी पास करके नौकरी कर तो ली थी पर उनके मन में कहीं न कहीं प्रशासनिक सेवा में जाने का ख्वाब छिपा था. नौकरी में उनका दिल नहीं लग रहा था. एक बार फिर अपने जीवन में मुश्किलों को हाथ थामते हुये उन्होंने साल 2004 में नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे. लेकिन यह राह इतनी भी आसान नहीं थी.

उन्हें फिर पैसे की कमी होने लगी. इस समस्या का हल निकालते हुये उन्होंने दिल्ली की एक कोचिंग में पढ़ाना शुरू कर दिया. पर वहां से होने वाली आमदनी पूरी नहीं पड़ती थी. दिल्ली जैसे बड़े शहर में यूं ही रहना और खाना खासा मुश्किल था. इन स्थितियों पर विचार करते हुये शशांक ने मेरठ में रूम लेकर रहना शुरू किया और दिल्ली अप-डाउन करने लगे.

संघर्ष और शशांक का नाता था अटूट

उनकी सफलता की राह में न जाने कितने रोड़े थे लेकिन यह जिद्दी इंसान भी हर मुश्किल के सामने डट कर खड़ा हो जाता था, मानो कह रहा हो आओं देखें किसमें कितना है दम. पैसे बचाने के लिये मेरठ में कमरा ले तो लिया पर रोज सफर करने में न जाने कितना समय चला जाता था. शशांक ने उसका भी हल निकाला और मेरठ से दिल्ली आने तक के सफर को स्टडी टाइम में कनवर्ट कर लिया. वो इस पूरे समय का सदुपयोग ट्रेन में बैठकर पढ़ाई करने में करते थे.

इस प्रकार ट्रैवलिंग में समय बर्बाद न होकर यूटिलाइज़ होने लगा. पर मुसीबतें यहां भी कम न हुईं. सोच-समझकर खर्च करने के बावजूद कई बार खाने के लिये भी पैसे नहीं बचते थे. पर ऐसे में इन परेशानियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय शशांक अर्जुन की तरह अपनी निगाह लक्ष्य पर रखते थे. बिस्किट खाकर काम चलाने वाले शशांक ने भूख को भी बीच में नहीं आने दिया.

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