पानी गीला नहीं होता, फिर हम क्यों भीग जाते हैं? टेढ़ा है ये सवाल
हमारे जीने के लिए जो चीजें सबसे ज्यादा ज़रूरी हैं, उनमें से एक है पानी. अगर हमें कुछ भी न मिले तो हम हवा और पानी के बल पर कुछ दिनों तक सर्वाइव कर सकते हैं. पानी न सिर्फ हमारे जीने के ज़रूरी है बल्कि जिस भी चीज़ को गीला करना हो, वहां पानी डाला जाता है. मसलन नहाने के लिए, कपड़े धोने के लिए या फिर कुछ साफ करने के लिए भी पानी का इस्तेमाल होता है.
पानी को हम इसी गुण से जानते हैं कि वो कहीं भी पड़ जाए, उस जगह को गीला कर देता है. चाहे वो किसी के शरीर पर हो या फिर किसी सतह पर. आपको जानकर हैरानी होगी कि पानी खुद गीला है ही नहीं, फिर हमें कैसे भिगा देता है? चलिए जानते हैं कि आखिर इसके पीछे कौन सा विज्ञान काम करता है.
पानी खुद गीला होता ही नहीं
आमतौर पर हम यही जानते हैं कि पानी इतना गीला है कि वो जहां भी पड़ जाए उस जगह को नमी से भर देता है. दरअसल पानी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से मिलकर बना है. ऑक्सीजन में नमी होती है और यही नमी पानी को नमी का गुण देती है. ऑक्सीजन के लिक्विड रूप में पानी होता है लेकिन ये खुद गीला नहीं होता. पानी जब किसी सॉलिड या ठोस सतह से टकराता है तो जिस नमी का अनुभव होता है, हम उसे गीलापन मानते हैं. पानी खुद तो कई तरह की धातुओं, मिनरल्स और अणुओं का मिश्रण है, जो उसकी प्राकृतिक गुणवत्ता भी है.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि पानी खुद गीला नहीं लेकिन दूसरों को गीलेपन का अनुभव दे सकता है. जब पानी द्रव यानि लिक्विड रूप में रहता है, तो इसके अणु थोड़ी दूरी पर होते हैं लेकिन तापमान के संपर्क में इसमें परावर्तन होता है. वैसे पानी सभी चीज़ों को गीला भी नहीं कर सकता. उदाहरण के तौर पर प्लास्टिक पानी से गीला नहीं होता. कुल मिलाकर गीलापन दरअसल पानी का गुण ही नहीं है, ये सिर्फ एक अनुभव है, जो हमारे अस्तित्व पर पानी के संपर्क में आने के बाद पड़ता है.