भारत में AC ट्रेन की शुरुआत कब हुई थी? ट्रेन को कैसे ठंडा रखा गया, इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है

अक्सर ट्रेन से सफर करते समय हमारे मन में कई तरह की बातें चलती रहती हैं, कई सवाल भी आते हैं। जैसे पहली ट्रेन कब चली, ट्रेन की लंबाई कितनी है, ट्रेन में एसी कोच कब लगाए गए, ट्रेन के कोचों के रंग अलग-अलग क्यों होते हैं…आदि। हम अक्सर रेलवे से जुड़े इन रोचक तथ्यों के बारे में जानकारी देते रहते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत में एसी कोच ट्रेन की शुरुआत कब हुई थी और यह ट्रेन कहां-कहां चलती थी।

आपको बता दें कि भारत की पहली एसी ट्रेन अंग्रेजों के समय की है और सबसे खास बात यह है कि यह ट्रेन आज भी चलती है। लेकिन अब इस ट्रेन का नाम बदलकर गोल्डन टेम्पल मेल कर दिया गया है. इस ट्रेन को उस समय की सबसे शानदार ट्रेन कहा जाता था। कहा जाता है कि फ्रंटियर मेल समय की बहुत पाबंद थी. ट्रेन चलने के 11 महीने बाद पहली बार 15 मिनट की देरी होने पर जांच के आदेश दिए गए। इस ट्रेन में ऐसी कई खूबियां हैं. आइए जानते हैं इस ट्रेन से जुड़े रोचक तथ्य…

भारत में AC ट्रेनें कब शुरू हुईं?
भारत में एसी ट्रेनों या कोचों का इतिहास बहुत दिलचस्प है। कहा जाता है कि भारत की एसी ट्रेन की शुरुआत साल 1928 में हुई थी. इस ट्रेन को अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए चलाया था।

ट्रेन में एसी कोच जोड़ने से पहले इसका नाम ‘पंजाब मेल’ रखा गया था, लेकिन साल 1934 में एसी कोच जोड़ने के बाद ट्रेन का नाम बदलकर ‘फ्रंटियर मेल’ कर दिया गया । बाद में इसका दोबारा नाम बदला गया और ‘गोल्डन टेम्पल माले’ नाम दिया गया।

ट्रेन मुंबई सेंट्रल से अमृतसर तक चली
भारत की पहली एसी ट्रेन मुंबई सेंट्रल से अमृतसर तक चली। कहा जाता है कि देश के बंटवारे से पहले यह ट्रेन पाकिस्तान के लाहौर और अफगानिस्तान से होते हुए मुंबई सेंट्रल तक जाती थी. यह ट्रेन उस समय की सबसे तेज़ ट्रेन मानी जाती थी और इसमें ब्रिटिश अधिकारी बड़ी संख्या में यात्रा करते थे।

ट्रेन को ठंडा रखने के लिए बर्फ का इस्तेमाल कर
ट्रेन को कैसे ठंडा रखा गया, इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है। पहले एसी ट्रेनों में उन्हें ठंडा रखने के लिए आज की तरह आधुनिक उपकरणों का उपयोग नहीं किया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि फ्रंटियर मेल को ठंडा रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल किया जाता था। पहले ट्रेनों में बर्फ के चैंबर होते थे, जिनमें बर्फ के टुकड़े रखे जाते थे। बर्फ के टुकड़ों के पास एक पंखा रखा गया था और जब पंखा चलता था तो ठंडी हवा खींची जाती थी।

15 मिनट देर से शुरू हुई

क्या स्वर्ण मंदिर मेल ट्रेन आज भी चल रही है?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि समय के साथ-साथ इस ट्रेन का रूप और रंग बदलता गया और आज भी यह ट्रेन चल रही है। अब यह ट्रेन आधुनिक हो गई है और इसमें सभी प्रकार के एसी कोच हैं।

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