बेहद अजीब है इस धर्म में अंतिम संस्कार का तरीका, सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है मामला!
नई दिल्ली. हर धर्म-संप्रदाय में जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक के अलग-अलग तरीके और रस्मो-रिवाज हैं. उदाहरण के लिए हिंदू और सिख धर्म के अनुयायी शव का दाह संस्कार करते हैं. वहीं मुस्लिम और ईसाई धर्मावलंबी शव को दफनाते हैं. वहीं भारत में रहने वाले एक धर्म के अनुयायी ऐसे हैं, जिनके अंतिम संस्कार का तरीका बेहद अलग है, वह है पारसी धर्म के लोग. पारसी धर्म में ना तो शव को जलाया जाता है, ना पानी में बहाया जाता है और ना ही जमीन में दफन किया जाता है. बल्कि वे धरती, आकाश, हवा, पानी आदि को दूषित होने से बचाने के लिए मृतक का बेहद खास तरीके से अंतिम संस्कार करते हैं.
पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. ऐसे में शव को जलाने, पानी में बहाने या दफन करने से ये तीनों तत्व अशुद्ध हो जाते हैं. इसलिए पारसी लोग अलग तरीके से शव का अंतिम संस्कार करते हैं. इसके लिए टावर ऑफ साइलेंस का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे दोखमेनाशिनी या दखमा भी कहा जाता है. यह एक खास गोलाकार जगह होती है जिसकी चोटी पर शवों को रख दिया जाता है. यूं कहें कि इसे आसमान के हवाले कर दिया जाता है. फिर गिद्ध उस शव का सेवन करते हैं. इससे पृथ्वी, जल, अग्नि कुछ भी दूषित नहीं होता है. पारसी धर्म में करीब 3 हजार सालों से अंतिम संस्कार की यही परंपरा जारी है. हालांकि गिद्धों की घटती संख्या के कारण पिछले कुछ सालों से पारसी समुदाय के लोगों को अंतिम संस्कार करने में खासी दिक्कतें आ रही हैं.
दरअसल, जब कोरोना महामारी चरम पर थी उस समय पारसी धर्मावलंबियों के अंतिम संस्कार के इस तरीके को लेकर आपत्ति उठाई गई थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में कहा था कि कोविड रोगी की मृत्यु होने पर उसका अंतिम संस्कार सही तरीके से करना जरूरी है, ताकि उससे संक्रमण न फैले. इसके लिए या तो शव को जलाया जाए या दफन किया जाए. वरना कोविड संक्रमित रोगी के शव से जानवरों आदि में संक्रमण फैलने की आशंका है.