रूस के इस हिस्से में है दुनिया का सबसे उदास शहर, बहती है खून जैसी लाल नदी, घट चुकी रहनेवालों की औसत आयु

लगातार 6वीं बार फिनलैंड को दुनिया का सबसे खुशहाल देश माना गया. वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट की लिस्ट में अफगानिस्तान और लेबनान सबसे परेशान मुल्क की श्रेणी में रखे गए. इसकी वजह भी है. दोनों ही देश काफी वक्त से राजनैतिक और आर्थिक उतार-चढ़ाव झेल रहे हैं, जो वहां रहने वालों को परेशान करने के लिए काफी है. इन सबके बीच रूस का एक ऐसा शहर है, जिसे दुनिया का सबसे उदास हिस्सा कहा जाता है. ये उदासी इतनी ज्यादा है कि साइबेरियाई बॉर्डर पर बसे इस शहर में रहने वालों की औसत आयु पूरे 10 साल कम हो जाती है.

साल 2016 में नॉरिल्स्क से कुछ डराने वाली तस्वीरें आने लगीं. ये डल्डिकेन नदी की तस्वीर थी, जिसमें गहरा लाल पानी बह रहा था. लोगों का कहना था कि नदी का पानी पहले भी अजीब था, लेकिन फिर एकदम से इसका रंग गहरा लाल हो गया. कयास लगने लगे कि पहले से ही कम उम्र जीते नॉरिल्स्क शहर का अंत करीब आ गया है. काफी जांच-पड़ताल के बाद रूसी अधिकारियों ने माना कि शहर में धातुओं पर काम करने वाले बड़े कारखाने हैं. उन्हीं के किसी पाइप में लीकेज हुआ होगा, जिससे नदी का पानी लाल हो गया. उन्होंने लोगों के पानी को साफ करके पीने और इस्तेमाल करने की सलाह दी.

इसके बाद ही बर्फीले किले की तरह लगते नॉरिल्स्क शहर की बात होने लगी. कई सैलानी सोशल मीडिया पर अपने तजुर्बे बांटने लगे कि वहां जाने के बाद लंबे समय तक वे उदास रहे. या फिर उनके भीतर खुदकुशी के खयाल आने लगे. ये अनुभव एक या दो लोगों के नहीं, बहुतों के थे. इसी दौरान मान लिया गया कि रूस का ये शहर डिप्रेशन जगाता है. इसकी एक नहीं, ढेरों वजहें गिनाई जाने लगीं.

मॉस्को से लगभग 18 सौ मील दूर बसे नॉरिल्स्क को दूसरे शहरों से जोड़ने के लिए कोई सड़क नहीं है. यहां सड़कें तो हैं, लेकिन शहर के भीतर ही एक से दूसरे हिस्से तक पहुंचने के लिए, बाहर से उनकी कोई कनेक्टिविटी नहीं. एक रेलवे लाइन है, जो कारखानों से माल ढोने के मकसद से बनाई गई थी, लेकिन बर्फीली सर्दियों में ये लाइन भी बंद रहती है. बाहरी दुनिया से जोड़ने के लिए हवाई सेवा तो है, लेकिन बर्फबारी की वजह से वो भी ज्यादातर बंद रहती है.

अगर कोई मजबूत दिल-दिमाग वाला शख्स यहां जाने की सोच ही ले तो पहली चीज जो दिखेगी, वो है सोवियत प्रिजन कैंप. मॉस्को से लगभग 5 घंटे की उड़ान के बाद फ्लाइट जहां लैंड करती है, वो जगह दूसरे विश्व युद्ध के समय डिटेंशन सेंटर हुआ करती थी. ये वही जगह है, जहां साल 1936 से लेकर अगले कई सालों तक लाखों मजदूर अमानवीय हालातों में काम करने के लिए मजबूर रहे. गिलट और तांबे की खदानों में काम करते हुए लगभग 18 हजार लोग इंफेक्शन से मर गए, जबकि इतने ही भूख से. चूंकि युद्ध के बाद शीत युद्ध का दौर था, जिसमें सोवियत बाकी सारे देशों से कटा हुआ था, तो असल डेटा कहीं भी पक्का नहीं.

मजदूरों की कब्रगाह से निकलते ही तीखी सर्दी आपका स्वागत करेगी. आमतौर पर शहर का तापमान -10 डिग्री होता है, जो सर्दियों में -60 तक चला जाता है. हर साल लगभग दो महीने यहां के लोग दिन की रोशनी नहीं देख पाते. ऐसे में ज्यादातर लोग घरों पर ही रहते हैं और इमरजेंसी सेवाएं ही चलती हैं. यानी अगर कोई टूरिस्ट ऐसे मौसम में यहां फंसा तो डिप्रेशन होना लाजिमी है.

यहां के लोगों में पोलर- T3 सिंड्रोम में कॉमन है. सूरज और रोशनी की कमी से होने वाली इस बीमारी में मरीज चिड़चिड़ा हो जाता है, याददाश्त कम होने लगती है और यहां तक कि फैसला लेने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.

कई लोग भारी ठंड के दौरान एक खास तरह का डिप्रेशन झेलते हैं, जिसे सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) कहते हैं. इससे बॉडी क्लॉक पर असर पड़ता है और प्रभावित व्यक्ति थकान, सिरदर्द और गहरी उदासी महसूस करने लगता है.

ठंड में जब रास्ते बर्फ से ढंके होते हैं तो आना-जाना मुश्किल हो जाता है. ये एक तरह के सोशल आइसोलेशन को जन्म देता है, जिसमें लोग आपस से कटकर रह जाते हैं. ये भी उदासी की बड़ी वजहों से में से. इसे समझने के लिए एक बार कोरोना का लॉकडाउन पीरियड भी याद कर सकते हैं, जब बाहर निकलने पर पाबंदी के कारण डिप्रेशन और घरेलू हिंसा की शिकायतें बढ़ी थीं.

ठंड कई तरीकों से यहां की जिंदगी पर असर डालती है. जैसे डेली रूटीन बदल जाता है. कामकाजी लोग दफ्तर नहीं जा पाते. खासकर रोज काम करके खाने वालों के लिए ये दोहरी मुसीबत लाती है. ऐसे में इकनॉमिक तौर पर कमजोर हुए लोग अवसाद में जा सकते हैं. वैसे एक बात ये भी है हैवी स्नोफॉल का सबपर एक जैसा असर नहीं होता. कई लोग इसे एंजॉय भी करते हैं, तो कई बेहद गंभीर अवसाद में चले जाते हैं. ऐसे में प्रोफेशनल इलाज से काफी मदद मिल सकती है.

नॉरिल्स्क को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहरों में रखा जाता है. यहां तक कि खुद रूस इसे देश का सबसे पॉल्यूटेड शहर बताता है. इसकी वजह है यहां पर निकल, तांबे और पैलेडियम की खदानें. दुनियाभर में निकल की सप्लाई का 5वां हिस्सा नॉरिल्स्क से आता है, जबकि आधे से ज्यादा पैलेडियम भी यहीं मिलता है. इससे यहां भारी प्रदूषण हो रहा है. डेटा बताते हैं कि निकल प्लांट्स से हर साल 2 मिलियन टन से ज्यादा जहरीली गैसें निकलती हैं, जिसमें सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन जैसी गैसें हैं.

दिन-रात जहरीली गैसों के बीच रहते लोगों की औसत आयु भी गिरने लगी. रूस के लोगों की औसत आयु लगभग 69 साल है, तो नॉरिल्स्क के लोग ज्यादा से ज्यादा 59 सालों तक जीते हैं. रूस की तुलना में यहां दोगुने कैंसर के मरीज हैं.

अगर सबकुछ इतना ही खराब है तो शहर में पौने दो लाख आबादी क्यों रह रही है! इसकी भी वजह है. दुनिया के सबसे उदास, किसी को भी डिप्रेशन दे सकने वाले शहर में एक अच्छी बात ये है कि यहां तनख्वाह अच्छी-खासी होती है. रूस की औसत इनकम लगभग 739 डॉलर है, जबकि नॉरिल्स्क की इससे 200 डॉलर ज्यादा है. यही वजह है कि यहां पर लोग टिके हुए हैं, लेकिन ये एक तरह के किले जैसा है, न तो लोग मेनलैंड जाते हैं, न ही बाहर से यहां रहने वाले लोग ज्यादा आते हैं.

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