रूस ने बिगाड़ दिया सऊदी अरब का खेल, मचा घमासान!

नई दिल्ली: तेल के फील्ड के दो बड़े दिग्गज सऊदी अरब और रूस के बीच ऑयल मार्केट में दबदबे को लेकर पिछले कुछ दिनों से तनातनी हो गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस से समझौते के बावजूद एशिया के तेल बाजार से कम होते दबदबे और कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि नहीं होने के कारण सऊदी अरब ने रूस से नाराजगी जाहिर की है.

दरअसल, दोनों देश तेल उत्पादक देशों के समूह OPCE+ के सदस्य हैं. लेकिन यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद रूस ने रियायती कीमतों पर तेल निर्यात करना शुरू कर दिया. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें कम हो गईं.

तेल की गिरती कीमत को देखते हुए पिछले महीने अप्रैल में रूस, सऊदी अरब समेत ओपेक प्लस के सदस्य देशों ने तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला किया. इस समझौते के तहत सऊदी अरब ने 5 लाख बैरल प्रति दिन तेल उत्पादन कम कर दिया. वहीं, सऊदी अरब का कहना है कि रूस ने वादा करने के बावजूद तेल उत्पादन में कटौती नहीं की.

अमेरिकी अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट’ जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब रूस से इसलिए भी खफा हो रहा है क्योंकि समझौते के अनुसार रूस ने तेल उत्पादन में कटौती नहीं की है. हालांकि, रूस का कहना है कि उसने भी समझौते के अनुसार तेल उत्पादन में कटौती की है. लेकिन ऑयल मार्केट विशेषज्ञ रूस के इस बयान से आश्वस्त नहीं हैं.

ऑयल मार्केट से जुड़े एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस ने तेल उत्पादन में कटौती नहीं की है. क्योंकि रूस ने ऑयल प्रोडक्शन को लेकर कोई आधिकारिक रिपोर्ट अभी तक नहीं जारी की है.

ऑयल मार्केट ट्रैकिंग डेटा को देखा जाए तो सवाल ये उठता है कि अगर रूस तेल उत्पादन में कटौती का पालन कर रहा है, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी सप्लाई कैसे बढ़ रही है. विशेष रूप से एशियाई ऑयल मार्केट जैसे- चीन और भारत में. जहां सऊदी अरब और मिडिल ईस्ट के देशों का दबदबा रहा है. वहां अब रूस का दबदबा है.

मई की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने भी कहा था कि ओपेक समझौते के बाद भी रूस ने अपने तेल उत्पादन में कटौती नहीं की है. इसके बजाय अपने राजस्व की भरपाई के लिए उत्पादन और निर्यात बढ़ाने की तलाश कर रहा है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 4 जून को होने वाली OPEC+ प्रमुख बैठक से पहले तेल उत्पादन नीति को लेकर दोनों देशों के बीच असमंजस की स्थिति है. समझौते के बावजूद रूस तेल उत्पादन में कटौती नहीं कर रहा है जिससे सऊदी तेल की कीमत 81 डॉलर प्रति बैरल से आगे नहीं बढ़ रही है. इसी कारण सऊदी अरब ने रूसी अधिकारियों के समक्ष अपनी नाराजगी जाहिर की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब ने रूसी अधिकारी से कहा है कि अप्रैल में हुए ओपेक समझौते का रूस पालन करे और साल के अंत तक प्रति दिन 5 लाख बैरल कम तेल उत्पादन करे.

रिपोर्ट के मुताबिक, रूस को लेकर सऊदी अरब की नाराजगी इसलिए भी बढ़ती जा रही है क्योंकि रियायती कीमतों पर तेल निर्यात की वजह से रूस ने एशियाई ऑयल मार्केट में अपनी जगह बना ली है. एक तरफ एशियाई बाजार सऊदी अरब के हाथों से निकलता जा रहा है. दूसरी तरफ, तेल उत्पादन में कटौती के बावजूद सऊदी तेल की कीमत नहीं बढ़ रही है.

चूंकि, रूस पर अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं. इस वजह से रूस रियायती कीमतों पर तेल बेचता है. रूसी तेल की कीमत कम होने के कारण एशिया के दो बड़े तेल आयातक देश भारत और रूस ने सऊदी अरब के बजाय रूस से तेल खरीदना शुरू कर दिया.

एनालिटिक्स फर्म वोर्टेक्सा के मुताबिक, एक साल पहले भारत को एक प्रतिशत से भी कम तेल निर्यात करने वाला रूस आज इराक और सऊदी अरब को पीछे छोड़ते हुए पिछले सात महीने से भारत के लिए नंबर 1 ऑयल सप्लायर बना हुआ है. इसके अलावा, चीन के लिए भी रूस नंबर 1 ऑयल सप्लायर बन गया है. इससे पहले सऊदी अरब चीन के लिए नंबर 1 ऑयल सप्लायर था.

सऊदी अरब की नाराजगी जायज भी है क्योंकि तेल उत्पादन में कटौती के बाद भी सऊदी तेल की कीमत नहीं बढ़ रही है. अप्रैल महीने में सऊदी के तेल उत्पादन में कटौती के वक्त तेल की जो कीमत थी, वर्तमान में भी वही है.

आगामी ओपेक बैठक से पहले रूस यह संकेत दे रहा है कि तेल उत्पादन सीमा को ज्यों का त्यों छोड़ दिया जाए. क्योंकि वर्तमान उत्पादन और कीमत कोटा के साथ तेल बाजार में रूस का दबदबा बरकरार है. पिछले सप्ताह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा भी था कि एनर्जी प्राइस इकोनॉमिकली उचित स्तर पर आ रही थी.

वहीं, 80 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत को सऊदी अरब उचित नहीं मानता है. इसलिए आगामी बैठक से पहले सऊदी अरब रूस के प्रति नाराजगी जाहिर कर रहा है.

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस महीने की शुरुआत में कहा था कि सऊदी अरब को इस साल अपने बजट को संतुलित करने के लिए तेल की कीमत कम से कम 80.90 डॉलर प्रति बैरल रहने की जरूरत है. जबकि सोमवार की सुबह ब्रेंट क्रूड लगभग 77 बैरल प्रति डॉलर के आसपास कारोबार कर रहा था.

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि सऊदी अरब के आर्थिक सलाहकारों ने हाल ही में सऊदी किंग को निजी तौर पर बताया है कि अगर सऊदी अरब NEOM जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को समय से पूरा करना चाहता है तो उसे अगले पांच वर्षों में 500 अरब डॉलर की जरूरत होगी. इसके लिए जरूरी है कि तेल की कीमत उच्चतम स्तर पर हो.

पिछले सप्ताह ही सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री और प्रिंस अब्दुलअजीज बिन सलमान ने शॉर्ट सेलर्स को कम कीमत पर तेल नहीं बेचने की चेतावनी दी है. इसके अलावा ऑयल इंडस्ट्री के जाने माने विश्लेषक पॉल सैंके ने कहा है कि एशियाई बाजार में रूस का फुटप्रिंट सऊदी अरब के लिए खतरा है.

सीनियर मार्केट एनालिस्ट फर्म OANDA के क्रेग एर्लाम ने भी पिछले सप्ताह कहा था, “ऐसा हो सकता है कि सऊदी अरब व्यापारियों को अपने इशारों पर चलाना चाहता हो, लेकिन अगर आप तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा करते हैं और रूस या कोई अन्य ओपेक सदस्य देश इसका पालन नहीं करता है, तो ऐसे में दुनिया को संदेश जाएगा कि ओपेक में सऊदी का दबदबा कम हुआ है. ऐसे में क्रूड ऑयल की कीमतों में और गिरावट देखी जा सकती है.

ओपेक प्लस 24 देशों का संगठन है. इस समूह में सऊदी अरब समेत 13 ओपेक देश हैं, जबकि 11 अन्य गैर-ओपेक देश हैं. जो नियमित रूप से बैठक कर यह तय करते हैं कि ऑयल मार्केट में कितना तेल बेचा जाए. इसका गठन 1960 में एक कार्टेल के रूप में किया गया था, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में तेल की आपूर्ति और इसकी कीमत तय करना था. ओपेक प्लस में सऊदी अरब का दबदबा माना जाता है.

इसमें शामिल सदस्य देश कुल वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 44 प्रतिशत उत्पादन करते हैं. 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के कुल तेल भंडार का 81.5 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं देशों के पास है. सऊदी अरब ओपेक में शामिल सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, जो एक दिन में 10 मिलियन बैरल से अधिक का उत्पादन करता है.

 

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