रूस पर लगीं 10 हजार से ज्यादा पाबंदियां, फिर भी कैसे ताकतवर बना हुआ है ये मुल्क?

फरवरी 2022 से लेकर इस साल 10 फरवरी तक रूस पर कुल 10,608 प्रतिबंध लग गए. ज्यादातर देशों ने जंग शुरू होने पर दबाव बनाने के लिए रूस पर पाबंदी लगाई. जैसे कई देशों ने उससे तेल या हथियारों के व्यापार पर अनिश्चित समय के लिए रोक लगा दी. कई देशों ने अपने यहां रूस की प्रॉपर्टी फ्रीज कर दी. वहीं बहुत से देशों ने मिलकर तय किया कि वे रूस के राष्ट्रपति या दूसरे नेताओं को अपने यहां आने नहीं देंगे, यानी ट्रैवल बैन.

एक देश, दूसरे देश पर सेंक्शन्स लगाता है, जब वो उसे कोई नियम तोड़ने या हिंसा से रोकना चाहता है. ये तरीका सीधी लड़ाई की बजाए ज्यादा असरदार है. आमतौर पर पाबंदियों से अलग-थलग पड़े देश थोड़े समय में ट्रैक पर लौट आते हैं. ये आजमाया हुआ तरीका है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पुराने समय में किसी गलती या कथित गलती पर लोग अपराधी के परिवार को ही बिरादरी से निकाल देते थे. इसे हुक्का-पानी बंद करना कहते. इसमें किसी खास मौके पर न तो उस घर में कोई जाता, न ही बुलाया जाता. तो कटा हुआ परिवार परेशान होकर सबकुछ मानने को तैयार हो जाता था. यही नुस्खा देश भी अपनाते हैं, लेकिन बड़े स्तर पर.

पाबंदियों की कई किस्में होती हैं. एक है ट्रेड एम्बार्गो. इसमें पाबंदीशुदा देश के साथ किसी किस्म का व्यापार नहीं होता. मान लीजिए किसी देश की इकनॉमी तेल से चलती है, और बाकी देश उससे तेल खरीदना बंद कर दें तो क्या होगा. बाकी देश तो किसी दूसरे मुल्क से तेल खरीद लेंगे लेकिन निर्यात पर टिका देश तेल के भंडार को न तो संभाल सकेगा, न ही उसे बेचकर पैसे ला सकेगा. रूस पर अमेरिका समेत बहुतेरे देशों ने ट्रेड एम्बार्गो लगा रखा है. ये सबसे ताकतवर तरीका है.

यूनाइटेड किंगडम ने रूसी बैंकों को अपने फाइनेंशियल सिस्टम से हटा दिया. अब रूसी बैंक यूके के बैकों से लेनदेन नहीं कर सकते. यहां तक कि आम रूसी नागरिक भी यूके के बैंक से तयशुदा से ज्यादा पैसे नहीं निकाल सकते. ये कैसे काम करेगा? इससे लोग नाराज होते हैं और देश की सरकार पर दबाव बनता है.

रूस में बड़ा बिजनेस तेल, गैस, तकनीक और हथियारों का था. लेकिन अब अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन जैसे बड़े हिस्सों ने रूस से तेल खरीदी बंद कर दी. जर्मनी ने अपने यहां चल रहे रूसी प्लांट की योजना ही बंद करवा दी. यूरोपियन यूनियन उससे कोयला खरीदना रोक चुका. तो इस तरह से पहले ही युद्ध में काफी पैसे झोंक चुके इस देश पर भारी दबाव बन चुका है.

रूस के बहुत से बिजनेसमैन फिलहाल प्रतिबंधों के शिकार हैं. ये सभी वे लोग हैं, जिनके कारण रूस की इकनॉमी चल रही है, जो वहां के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ जिनके अच्छे रिश्ते हैं. ऐसे में संभावना ये भी है कि शायद उनके प्रेशर में आकर ही पुतिन अपनी सेनाओं को पीछे हटने कह दें. लेकिन इतनी पाबंदियों के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हो रहा.

व्यापार पर दुनिया के ज्यादातर देशों के प्रतिबंध के बाद रूस उस स्थिति में जा सकता है, जहां सदियों पुराना बार्टर सिस्टम आ जाए. यानी रूस की जनता एक सामान खरीदने के बदले दूसरा सामान दे क्योंकि मार्केट में पैसे नहीं होंगे. फिलहाल उसके पास एक्सपोर्ट रेवेन्यू पैदा करने का कोई जरिया नहीं. लेकिन तब भी वो अपना काम निकाल पा रहा है. इसकी वजह ये है कि प्रतिबंध लगानेवाले देशों के अलावा बाकी देश उससे व्यापार कर रहे हैं. वे रूस को अपनी करेंसी में भुगतान करते हैं, जिसे बाद में बैंकों से मिलकर डॉलर या यूरो में बदलवाया जा सकता है.

इंपोर्ट कम होने पर नुकसान की बजाए कुछ फायदे भी उसे हो रहे हैं, जैसे खाने-पीने की जो चीजें बाहर जाया करती थीं, वो अब रूस के घरेलू काम में आ रही हैं. युद्ध के कारण कीमतें वैसे ही बढ़ी हुई हैं. तो इस तरह से रूसी खजाने के पास पैसे आ ही रहे हैं. लेकिन इस सबके बावजूद रूसी ताकत पर बड़ा फर्क पड़ रहा है. सेंटर फॉर इकनॉमिक रिकवरी की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन पर हमले के पांच ही दिनों में रूस की इकनॉमी पर लगभग 7 बिलियन डॉलर का दबाव पड़ा. इसमें 6 हजार रूसी लोगों की मौत से जीडीपी पर पड़ा प्रेशर भी शामिल है.

रूस के अलावा नॉर्थ कोरिया, ईरान और सीरिया पर भी हजारों पाबंदियां लग चुकी हैं. लगभग सभी पर आरोप है कि वे किसी न किसी तरह से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. उत्तर कोरिया पर अमेरिका नाराज रहता है क्योंकि वो अक्सर की अपनी परमाणु ताकत की बात करते हुए अमेरिका को भी धमकाता है. तो रोकने से ज्यादा अपनी ताकत दिखाने के लिए भी देश, एक-दूसरे पर प्रतिबंध लगाते रहे. अमेरिका और यूरोपियन यूनियन इसमें उस्ताद हैं. उनकी देखादेखी बाकी देश भी वही करने लगते हैं.

साल 1953 में कोरियन युद्ध के बाद से ये देश लगभग पूरी दुनिया से कटा रहा. सोवियत यूनियन और चीन ही उसके साथ थे. बाद में भी हालात ज्यादा नहीं बदले, बल्कि बिगड़े ही. पश्चिमी देशों से नफरत करने वाला ये देश किसी बड़े देश के साथ व्यापार नहीं करता है. रहस्यों में रहने वाले नॉर्थ कोरिया के हालात के बारे में पक्की खबर तो नहीं आ पाती, लेकिन कई इंटरनेशनल रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि वहां की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जी रही है. दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल ये देश वर्ल्ड बैंक से लोन भी नहीं लेता क्योंकि इससे उसे बाहरी दुनिया से घुलना-मिलना होगा. कुल मिलाकर दूसरे देशों ने ही इसपर पाबंदियां नहीं लगाईं, बल्कि ये देश खुद अपने-आप पर भी पाबंदी लगाए हुए है.

प्रतिबंध सिर्फ किसी देश को आतंक या युद्ध से रोकने के लिए नहीं लगते, बल्कि कई बार देश आपसी खुन्नस में भी ऐसा कर जाते हैं. खासकर ताकत की लड़ाई में अमेरिका या यूरोप के कई देश ऐसा करते हैं ताकि अगला देश कमजोर पड़ जाए. यही वजह है कि भारत देशों के आपसी प्रतिबंध को खास तवज्जो नहीं देता, बल्कि सिर्फ संयुक्त राष्ट्र की पाबंदियों को सपोर्ट करता है. यहां तक कि रूस से व्यापार जारी रखने पर कई देश भारत से नाराज भी हो गए, लेकिन देश ने अपना यही स्टैंड रखा.

 

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