अनोखी मिसाल: तीसरी पीढ़ी में भी शिक्षा को समर्पित जीवन जीने की चाह, दादा दादी के संस्कार और जीवन शैली बनी परिवार की खूबसूरत वंश परंपरा

उरई जालौन -संस्कारों की प्रबलता किस कदर पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हो सकती है इसकी जीती जागती मिसाल यहां नगर के एक किसान परिवार में देखने को मिल रही है जहां बाबा दादी ने शिक्षा के क्षेत्र में जो बीज रोपा वह अब तीसरी पीढ़ी में भी विशाल बट वृक्ष की भांति अपनी शाखाएं फैला रहा है आसान शब्दों में कहें तो इस परिवार की खासियत यह है कि लगातार तीसरी पीढ़ी तक इस परिवार के सदस्य शैक्षणिक क्षेत्र में जुड़े रहकर ही अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां का निर्वहन कर रहे हैं पहले बाबा दादी फिर माता-पिता और अब उनके बच्चे भी शिक्षक की भूमिका में तो है ही साथ ही अब वे इस क्षेत्र में भी ऊंचे मुकामों तक लक्ष्य करने को बेताब हैं।

जनपद के डकोर विकास खंड स्थित ग्राम अकोडी बैरागढ़ निवासी स्वर्गीय चंद्रभान बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक के पद पर तैनात रहे तो उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला देवी भी शिक्षिका के तौर पर अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां का निर्वहन करती रही और मौजूदा समय में सेवा निवृत होकर भी अपनी इस शैक्षणिक दायित्व को अपने बच्चों और यहां तक की अपने पौत्र पोत्री में भी बरकरार बनाए हैं। शैक्षणिक योग्यताएं हासिल करने के बाद उनके पुत्र अवधेश निरंजन ने भी स्वयं को शिक्षा विभाग से जोड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी यहां तक की अपनी पत्नी श्रीमती नीलम को भी शिक्षिका बनने के लिए प्रेरित किया और वह अभी बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापिका की जिम्मेदारी निभा रही हैं बात यहीं तक नहीं खत्म होती परिवार की अगली पीढ़ी में भी शिक्षण कार्य के प्रति समर्पित भाव है।

अवधेश कुमार निरंजन के बड़े बेटे अभिषेक राज ने भी शैक्षणिक योग्यता हासिल करने के उपरांत स्वयं के लिए शिक्षा विभाग को ही सर्वोत्तम प्लेटफार्म बनाया और अपनी धर्मपत्नी श्वेता पटेल नवी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद स्वयं को शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया और मौजूदा में वह भी बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापिका की नौकरी कर रही हैं। मसलन साफ है कि स्वर्गीय चंद्रभान और उनकी धर्मपत्नी सुशीला देवी ने जिस तरह से अपने जीवन की सार्थकता को शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित करने के बाद शिक्षा के जिस पौधे को आरोपित किया वह धीरे-धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारों की एक स्वस्थ परंपरा के रूप में विकसित होता गया और आज शिक्षा का एक बट वृक्ष के तौर पर अपनी जड़े जमा चुका है। स्वर्गीय चंद्रभान के पुत्र अवधेश निरंजन बतलाते है कि यह उनका सौभाग्य है कि उनके पिता के संस्कार न सिर्फ उन तक सीमित रहे बल्कि उनके पुत्र और उनकी बहू में भी निभाने के भाव के तौर पर बने हुए हैं।

शिक्षक सिद्धार्थ शिक्षा शास्त्र मैं पी एचडी के लिए चयनित
उरई- अपने बाबा और दादी के आशीर्वाद और संस्कारों को लेकर सिद्धार्थ जिस तरह से शिक्षक बनकर भी शिक्षा के ऊंचे मुकाम हासिल करने की ख्वाहिश सजाय है यह भी काबिले तारीफ है वह स्वयं बतलाते हैं कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें बचपन से ही अपने बाबा दादी के द्वारा यही सिखाया गया कि शिक्षक बनकर ही जीवन की सार्थकता को हासिल किया जा सकता है शिक्षक समाज का निर्माता होता है और यह दायित्व कोई साधारण दायित्व नहीं है यही वजह है कि वह अब अपने जीवन में शिक्षा के ऊंचे से ऊंचे मुकाम हासिल करना चाहता है जिसके लिए उसने एजुकेशन विषय को चुना पहले स्नातक के बाद पर स्नातक में शिक्षा शास्त्र को लेकर पढ़ाई की और अब उसे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय द्वारा एजुकेशन में ही पीएचडी करने का अवसर मिला है। सिद्धार्थ ने बंशीधर महाविद्यालय से m.Ed की परीक्षा में भी जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। यही नहीं वह दो बार यूजीसी द्वारा आयोजित नेट परीक्षा में भी सफलता प्राप्त कर जनपद का गौरव बन चुके हैं।

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