घने जंगल में रहने वाले इस जानवर की हो रही सबसे ज्यादा तस्करी, 1 किलो की कीमत लाखों में, क्या है हेल्थ से कनेक्शन

लगभग दो साल पहले एनवायरमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (EIA) की एक रिपोर्ट ने तहलका मचा दिया था. एजेंसी ने पेंगोलिन नाम के जंगली पशु की तस्करी पर बात करते हुए कई ऑनलाइन साइट्स पर आरोप लगाया. उसका कहना था कि दवाएं बेचने वाली बहुत सी वेबसाइट्स पर पेंगोलिन के शरीर से बने उत्पाद बेचे जा रहे हैं. यहां तक कि 2 सौ से ज्यादा कंपनियों ने बाकायदा लाइसेंस ले रखा है, जिसमें वे पेंगोलिन की स्केल्स से बनी दवाएं और कॉस्मेटिक्स बेचने का दावा करती हैं.

एजेंसी समेत पशुओं और पर्यावरण पर काम करने वाली कई संस्थाओं ने आशंका जताई कि जल्द ही पेंगोलिन भी डोडो पक्षी की श्रेणी में आ जाएंगे. ये वो पक्षी थे, जिनके मांस के बीसियों फायदे बताते हुए उनकी इतनी तस्करी हुई कि वे विलुप्त हो गए.

ये कीड़े खाने वाले स्तनधारी हैं, जो लगभग 80 मिलियन सालों से धरती पर हैं. यानी एक तरह से ये सबसे लंबा टिकने वाली मैमल्स की कतार में हैं. अफ्रीका और एशिया के घने जंगलों में मिलने वाले ये जीव बहुत खास हैं. ये रेप्टाइल्स की तरह दिखते हैं, जिसकी वजह है उनके शरीर पर लंबी-लंबी स्केल्स का होना. इनकी जीभ 40 सेंटीमीटर लंबी होती है, जिससे वे चींटियां, दीमक और छोटे कीड़े-मकोड़े खा सकें. एक अकेला पेंगोलिन हर साल लगभग 70 मिलियन कीड़े खा जाता है.

पेंगोलिन की कुछ 8 प्रजातियां हैं, जिनमें से पांच प्रजातियों के बारे में माना जा रहा है कि वो आने वाले कुछ सालों में खत्म हो जाएंगी. बाकी तीन के बारे में अंदेशा है कि वे इससे भी कहीं जल्दी गायब होने वाली हैं. ये सभी वे स्पीशीज हैं, जो किसी न किसी तरह से ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन में उपयोग की जाती हैं. यानी चीन इस जानवर की तस्करी और उसे मारने में सबसे आगे है.

यहां बता दें कि चीन में ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन (TCM) पर काफी जोर दिया जाता है. ये वहां की हजारों साल पुरानी विधा है, जिसमें शरीर में मौजूद एनर्जी को ठीक करके बीमारियों के इलाज का दावा किया जाता है. प्राचीन चीन में माना जाता था कि जैसे ही शरीर की एनर्जी गड़बड़ाती है, कोई न कोई बीमारी हो जाती है. टीसीएम में इसी गड़बड़ी पर फोकस किया जाता है, जिसके कई तरीके हैं. हर्बल मेडिसिन भी इसका बड़ा हिस्सा है. इसके तहत जड़ी-बूटियां ही नहीं, बल्कि जानवरों के मांस या तेल का भी सेवन किया जाता है. पेंगोलिन भी इसका हिस्सा है.

इसकी ड्राई की हुई स्केल्स को सिरके में संरक्षित करके रखा जाता है और फिर लेक्टेटिंग मदर या मरीजों को खिलाया जाता है. दिमागी बीमारियों में भी इसे खाने की सलाह दी जाने लगी. नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के ऑनलाइन रिसोर्स सेंटर नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में जुलाई 2020 में एक रिपोर्ट आई. इसके मुताबिक, पेंगोलिन की स्केल यानी शरीर के ऊपर की खोल को चीन में खूब महत्व मिलता है. ये चीनी मेडिसिन है, जो नई मांओं को ताकत देती है और लेक्टेशन में मदद करती है. इसके अलावा पेंगोलिन को स्पर्म काउंट बढ़ाने वाला भी माना गया.

यहां तक कि साल 1960 से लेकर अब तक चीन के जंगलों में 90 प्रतिशत से ज्यादा पेंगोलिन खत्म हो गए. इसके बाद से वियतनाम और अफ्रीका के जंगल खंगाले जा रहे हैं ताकि मेडिसिन तैयार हो सके. इंटरनेशनल ब्लैक मार्केट में ये भारी दामों पर मिलता है. जैसे इंडियन पेंगोलिन की बात करें तो इसके एक किलो स्केल का दाम एक लाख है और पूरा पेंगोलिन 10 से 15 लाख तक में मिलता है. चीनी और फिलीपीनी पेंगोलिन की कीमत और ज्यादा हो जाती है. दुर्लभ होने के साथ ही इसकी कीमत बढ़ती जा रही है.

ये तस्करी इतनी बढ़ी कि साल 2019 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने इस जानवर को रेड लिस्ट में डाल दिया. ये वो लिस्ट है, जिसमें तेजी से विलुप्त हो रहे पशु-पक्षी रखे जाते हैं. IUCN के दबाव में आकर चीन ने भी बड़ा फैसला लिया. सालभर बाद उसने पेंगोलिन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोटेक्टेड एनिमल घोषित कर दिया. ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन की लिस्ट से भी इसे हटा दिया गया, लेकिन इस्तेमाल पूरी तरह से बंद हुआ हो, ऐसा कहा नहीं जा सकता.

माना जा रहा है कि यही हाल रहा तो साल 2030 तक चीनी और सूडान के पेंगोलिन के अलावा फिलीपींस के पेंगोलिन भी खत्म हो जाएंगे. इसके बाद बची-खुची स्पीशीज की पारी आएगी.

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