देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है होली का त्योहार, जानें इसे मनाने की अजब-गजब परंपराएं

नई दिल्ली। कुछ ही दिनों में रंगों का त्योहार होली आने वाला है। ऐसे में हर कोई इस त्योहार की तैयारियों में व्यस्त हैं। देश भर में बड़ी धूमधाम इसे मनाया जाता है। लोगों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह देखने को मिलता है। हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर बनाया जाता है। इस साल देशभर में होली का त्योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। इस त्योहार की धूम देश के हर हिस्से में देखने को मिलती है। हालांकि इसे बनाने का तरीका और इसके नाम विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होते हैं। तो चलिए जानते हैं देश में मनाई जाने वाली विभिन्न प्रकारों की होली के बारे में-

हर साल उत्तर प्रदेश के बरसाना में होने वाली लट्ठमार होली देश-दुनिया में काफी मशहूर है। यह होली बरसाना के साथ ही वृंदावन, मथुरा और नंदगांव में भी खेली जाती है। राधा-कृष्ण के समय से चली आ रही यह होली रंगों से नहीं, बल्कि लाठियों से खेली जाती है। दरअसल, इस होली के खेलते हुए महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं। इसलिए इसे लट्ठमार होली कहा जाता है।

वृंदावन में खेली जाने वाली फूलों की होली एक शानदार त्योहार होता है, जो हर साल फूलेरा दूज पर आयोजित होती है। जैसाकि नाम से ही पता चल रहा है कि इस होली को रंगों और पानी की बजाय फूलों के खेला जाता है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के पुजारी मंदिर के द्वार खोलते ही भक्तों पर फूल फेंकते हैं और फिर इस तरह लोग फूलों का होली का आनंद लेते हैं।

खासतौर पर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में खेली जाने वाली खड़ी होली भी भारत में प्रचलित होली का एक प्रकार है। इस त्योहार को मनाने के लिए स्थानीय लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर खारी गीत गाते हुए समूहों में नृत्य करते हैं।

होली के त्योहार को पंजाब में होला मोहल्ला के रूप में मनाया जाता है। यह एक तरह की योद्धा होली, जिसे निहंग सिखों द्वारा मनाया जाता है। इस दौरान यह लोग मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हुए अपने दिल की बातें गाते हैं। आमतौर पर इस त्योहार होली से दिन पहले मनाया जाता है।

मणिपुर में होली को योशांग के नाम से मनाया जाता है। इस उत्सव में कई सारे लोग एक साथ हिस्सा लेते हैं। पांच दिनों तक चलने वाला यह उत्सव लामता महीने की पूर्णिमा पर आयोजित किया जाता है। रंगों के साथ ही इस उत्सव को गायन, नृत्य, और कई अन्य पारंपरिक तरीकों के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य आकर्षण थाबल चोंगबा है, जो एक मणिपुरी लोक नृत्य है।

पश्चिम बंगाल में होली के पर्व को ‘डोल जात्रा’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहां के लोग कृष्ण और राधा की मूर्तियों को पालकी पर रखकर गुलाल से खेलते हैं। साथ ही इस दिन युवा अपने से बड़ों के पैरों पर रंग लगाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इसके अलावा इस दिन लोग त्योहार को मनाने के लिए केसरिया रंग के कपड़े पहनते हैं और गाते-नाचते हैं।

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर स्थित सांगला घाटी भी अपनी विशिष्ट होली समारोह के लिए जाना जाती है। बसपा नदी के तट पर स्थित इस घाटी को बसपा घाटी के नाम से भी जाना जाता है। इस उत्सव के दौरान पूरी घाटी रंगों से रंगी नजर आती है। रंगों के साथ ही संगीत, नुक्कड़ नाटक और नृत्य के साथ यह होली समारोह मनाया जाता है। इस उत्सव के तीसरे दिन रामायण की प्रस्तुति भी की जाती है।

होली के त्योहार को असम में फकुवा के रूप में मनाया जाता है। यह बंगाल में मनाए जाने वाले ‘डोल जात्रा’ की ही तरह है। हालांकि, यहां पर इस त्योहार को दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन की कथा के बाद मिट्टी की झोपड़ियों को जलाया जाता है। वहीं, दूसरे दिन लोग रंगों के साथ इस त्योहार को मनाते हैं।

बिहार में भी होली के त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। स्थानीय भोजपुरी बोली में इसे पर्व को फगुआ कहा जाता है। हालांकि, यहां होली खेलने से पहले होलिका दहन करना बेहद जरूरी माना जाता है। इसके बाद ही लोकगीतों, पानी और रंगों के साथ होली मनाई जाती है।

दक्षिण भारत में भी होली का त्योहार सेलिब्रेट किया जाता है। हालांकि, देश के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां की होली उतनी लोकप्रिय नहीं है। लेकिन यहां के कुछ समुदाय इस त्योहार को सेलिब्रेट करते हैं। केरल में, होली को मंजल कुली और उक्कुली कहा जाता है।

 

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