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उर्दू शब्द ‘शाही’ और ‘पेशवाई’ को कुंभ से भी हटाने की तैयारी, CM मोहन यादव के फैसले का संतों ने किया समर्थन

उज्जैन : उत्तराखंड के हरिद्वार में संतों (Saints) ने हिंदू धार्मिक संदर्भों में इस्तेमाल किए जाने वाले उर्दू शब्द ‘शाही’ (Urdu word Shahi) को हटाने की मांग की. इसके स्थान पर हिंदी या संस्कृत के शब्दों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया. यह घटनाक्रम मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव (Chief Minister Mohan Yadav) के एक फैसले के बाद सामने आया है.

दरअसल, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उज्जैन में बाबा महाकाल की सावन के महीने में सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी के ‘शाही’ शब्द को हटा दिया. ‘शाही सवारी’ के स्थान पर ‘राजसी सवारी’ का इस्तेमाल किया जाने लगा है. इसी घटनाक्रम के बाद हरिद्वार में संतों ने कहा कि जल्द ही यहां विभिन्न अखाड़ों की बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें ‘शाही’ या ‘पेशवाई’ जैसे शब्दों के स्थान पर उनके संस्कृत के शब्दों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव पारित किया जाएगा. उनके अनुसार, ये शब्द मुगलों के प्रति भारत की गुलामी का प्रतीक हैं.

‘शाही’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर कुंभ आयोजन के संदर्भ में किया जाता है, जिसमें स्नान को ‘शाही स्नान’ कहा जाता है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कहा कि ‘शाही’ शब्द भारतीय संस्कृति की परंपरा में नहीं है.

इस मामले पर चर्चा करने और उर्दू शब्दों को संस्कृत मूल के शब्दों से बदलने का प्रस्ताव पारित करने के लिए जल्द ही अखाड़ों की बैठक बुलाई जाएगी. पुरी ने कहा कि यह प्रस्ताव उन सभी शहरों के प्रशासन को भेजा जाएगा, जहां कुंभ मेला या इसी तरह के धार्मिक आयोजन होते हैं.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविन्द्र पुरी (निरंजनी) ने कहा, “शाही और पेशवाई जैसे शब्द गुलामी के प्रतीक हैं और मुगल शासकों द्वारा अपने गौरव को दर्शाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता था. ये शब्द उर्दू भाषा के हैं, जबकि प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति की भाषा संस्कृत है, जिससे हिंदी की उत्पत्ति हुई है.”

बता दें कि प्राचीन काल में ‘रॉयल’ के लिए ‘शाही’ या ‘राजसी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता था. जबकि ‘पेशवाई’ एक फारसी शब्द है. जिसका अर्थ है- किसी आदरणीय के आने पर आगे बढ़कर स्वागत करना या अगवानी करना. मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को ‘पेशवा’ कहा जाता था. वे राजा की सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे. महाराष्ट्र सामाज्य में पेशवाओं की शासनप्रणाली या शासन-काल चलता था.

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