कब्रिस्तान बनाने के लिए काटना पड़ा जंगल, तुर्की के इस शहर में एक साथ दफनाए गए 5 हजार शव

प्लास्टिक के काले बैग में बंद लाशों का ढेर, टेबल पर परिजनों का शव रखकर जनाजे की नामज पढ़ते लोग और कड़ाके की ठंड में जेसीबी की मदद से कब्र खोदते कर्मचारी… ये दृश्य है तुर्की के कहरामनमारस शहर का. तुर्की में आए भूकंप ने यहां ऐसी तबाही मचाई है कि हर तरफ लाशों का ढेर लग गया है. इन लाशों को दफनाने के लिए यहां जंगल का एक हिस्सा काटकर सामूहिक कब्रिस्तान बनाया गया.

लोग बदहवास होकर भूकंप के बाद लापता रिश्तेदारों की खोज करने के लिए कब्रिस्तान के पास आ रहे हैं और इन लाशों में उनकी तलाश कर रहे हैं. इस शहर में जमींदोज हो चुकी इमारतों का मलबा हटाने पर जो भी लाशें मिल रही हैं, उन्हें इस कब्रिस्तान के पास ही लाया जा रहा है. अब तक 5 हजार शवों को शिनाख्त के बाद दफनाया जा चुका है.

परिजनों को ढूंढते हुए लोगों के आने का सिलसिला जारी है. लोग यहां आते हैं और काले प्लास्टिक के बैग में पैक लाशों को खोलकर पहचान करने लगते हैं. जिन लोगों को कोई अपना मिल जाता है, वे उसके बाद अपने परिजन के लिए कब्र की व्यवस्था करने के उद्देश्य से यहां-वहां दौड़भाग शुरू कर देते हैं. दरअसल, यहां इतनी तादाद में लाशों के आने का सिलसिला जारी है कि जंगल काटकर सामूहिक कब्रिस्तान बनाने के बाद भी लोगों को कब्रों के लिए मारामारी करनी पड़ रही है.

नया कब्रिस्तान बनाने के लिए सरकार ने बड़ी-बड़ी जेसीबी मशीनें लगवा दी हैं, जो दिन रात जंगल साफ कर मिट्टी खोदने के काम में लगी हुई हैं. हर मिनट यहां एंबुलेंस के आने का क्रम जारी है, जो हर चक्कर के साथ दर्जन भर शव लेकर आती है. यहां मौजूद लोग बताते हैं कि मकबरा बनाने के लिए न पत्थर है और न ही दूसरी जरूरी चीजें. एक छोटी सी लकड़ी पर काले रंग के स्केच पेन की मदद से वे रिश्तेदारों की कब्रों का नंबर और उनका नाम नोट कर रहे हैं.

Mediterranean region में बसा एक महत्वपूर्ण शहर है. यह कहारनमारास प्रांत का प्रशासनिक केंद्र भी है. 1973 से पहले इसे आधिकारिक तौर पर मारस नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसमें कहरामन शब्द जोड़ दिया गया, जिसका फारसी में अर्थ हीरो होता है.

भूकंप से अब तक तुर्की और सीरिया में 34 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. लाशों के निकलने का क्रम जारी है. कई ऐसी इमारते हैं, ढहने के बाद जिनका मलबा अब तक नहीं हटा जा सका है. रेस्क्यू ऑपरेशन युद्ध स्तर पर जारी है. लेकिन सभी इमारतों का मलबा हटाने में अभी कुछ दिन और लग सकते हैं. इसलिए माना जा रहा है कि मौत का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है.

बता दें कि तुर्की में भूकंप के झटके 6 फरवरी को महसूस किए गए थे. पहला झटका सुबह 4.17 बजे आया. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 7.8 मैग्नीट्यूड थी. भूकंप का केंद्र दक्षिणी तुर्की का गाजियांटेप था. इससे पहले की लोग इससे संभल पाते कुछ देर बाद ही भूकंप का एक और झटका आया, रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 6.4 मैग्नीट्यूड थी. भूकंप के झटकों का यह दौर यहीं नहीं रुका. इसके बाद 6.5 तीव्रता का एक और झटका लगा.

भूकंप के इन झटकों ने मालाटया, सनलीउर्फा, ओस्मानिए और दियारबाकिर सहित 11 प्रांतों में तबाही मचा दी. शाम 4 बजे भूकंप का एक और यानी चौथा झटका आया. इस झटके ने ही सबसे ज्यादा तबाही मचाई. इसके ठीक डेढ़ घंटे बाद शाम 5.30 बजे भूकंप का 5वां झटका आया था.

भूकंप की मार झेल रहे तुर्की और सीरिया की मदद के लिए कई देश आगे आए हैं. भारत ने मेडिकल टीम के साथ ही NDRF की टीमों को भी तुर्की पहुंचा दिया है तो वहीं भारत के अलावा कई देशों ने मदद भेजी है. वर्ल्ड बैंक ने तुर्की को 1.78 बिलियन डॉलर देने का ऐलान किया है. वहीं, अमेरिका ने तुर्की और सीरिया की मदद के लिए 85 मिलियन डॉलर की सहायता की घोषणा की है.

इस कठिन वक्त में तुर्की की मदद के लिए आगे आते हुए भारत ने ‘ऑपरेशन दोस्त’ नाम से एक मिशन ही लॉन्च कर दिया है, जिसका मकसद भूकंप की मार झेल रहे तुर्की को मदद मुहैया कराना है. भारत ने NDRF की 3 टीमों को रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल होने के लिए तुर्की भेजा है. इसके साथ ही भारतीय सेना की एक मेडिकल टीम भी इस वक्त तुर्की में ही है. भारतीय सेना ने हताए शहर में फील्ड हॉस्पिटल बनाया है. जहां लगातार घायलों का इलाज किया जा रहा है.

तुर्की की भौगोलिक स्थिति के चलते यहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं. 1999 में आए भूकंप में 18,000 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं अक्टूबर 2011 में आए भूकंप में 600 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. बता दें कि सीमावर्ती सीरिया में भी भूकंप ने तबाही मचाई, जिसकी खौफनाक तस्वीरें सामने आईं.

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