कैसे पता चलता है ट्रेन से अलग हो गए हैं डिब्बे, 1 नहीं कई हैं तरीके, ऐसी स्थिति में क्या करता है चालक

 


ट्रेन से पीछे वाले कोच के अलग होने की सबसे बड़ी पहचान होती है लगातार ब्रेक लगना. डिब्बे अलग होने की वजह से ब्रेक प्रेशर कम होने लगता है. ठीक उसी तरह से जैसे चेन पुलिंग के समय होता है. इसके बाद ड्राइवर धीरे-धीरे ब्रेक लगाने लगता है.

अगर लोको पायलट किसी वजह से इसे नजरअंदाज कर भी दे तो पीछे वाले डिब्बे में बैठा गार्ड लैंप या हरे रंग का झंडा दिखाकर ड्राइवर को रोकने का प्रयास करता है. ड्राइवर या उसका सहायक हर थोड़े समय पर पीछे की देखते रहते हैं और उन्हें इसके बारे में पता चल जाता है.

इसके बाद अगर ट्रेन को पीछे लाकर जोड़ना संभव हो तो ऐसा किया जाता है वरना गार्ड एक लिखित अनुमति चालक को देता है कि वह आगे का हिस्सा लेकर स्टेशन तक पहुंचे और फिर वही इंजन या कोई और इंजन बाकी बचे हिस्से को लेने आए.

अगर लोको पायलट को ट्रेन पार्टिंग की कोई जानकारी नहीं होती और वह आगे निकल जाता है तो अगले किसी स्टेशन पर स्टेशन मास्टर को गाड़ी का आखिरी डिब्बा देखकर यह पता चल जाता है.

अगर गाड़ी के आखिरी डिब्बे पर X का निशान नहीं है तो इसका मतलब है कि पीछे वाला डिब्बा छूट गया है और अब वह ट्रेन उसी स्टेशन पर रोक दी जाएगी जब तक कि बाकी हिस्सा वहां नहीं लाकर जोड़ा जाता.

अगर ट्रेन लंबी दूरी तक बगैर पीछे वाले डिब्बों के चल रही है तो इसका पता ट्रैक के बगल लगे एल्यूमीनियम बॉक्स से पता चलता है जो ट्रेन के पहियों को जोड़ने वाले लोहे की रॉड को गिन रहे होते हैं. गिनती कम होने का मतलब है कि ट्रेन के डिब्बे पूरे नहीं हैं.

आपको बता दें कि ट्रेन का पिछला जहां छूटा होता है उस जगह ब्लॉक सेक्शन कहा जाता है. इसके बाद सिग्नलमैन को इसकी सूचना दी जाती है जो उस रास्ते पर ट्रेनों को आने से रोकता है.

 

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