राजनीति के मंजर में, ब्राह्मण फंसे बवंडर में!


मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राजनीति कभी दिशा तय करने वाला ब्राह्मण समाज राजनैतिक कटुता के जाल में फंस गया है। कई पार्टियों द्वारा जान-बूझ कर लगातार ब्राह्मणों का शाब्दिक मान-मर्दन करने और ब्राह्मणों के समर्थन से सत्ता भोगने वालों की चुप्पी ने ब्राह्मणों को किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया है।जिसके कारण कभी अपनी एकता और वोकल वोट बैंक की ताकत रहा समाज राजनैतिक दलों की पहली पसंद नहीं रह गया। अन्य समाज का वोट लेने की गरज कहें या ब्राह्मणों के प्रति समाज मे जड़ पकड़ता नफरत का दुष्प्रचार उनके हाथ से सत्ता बनाने की चाभी छिन गयी सी है। दूसरों के कल्याण में कभी बीटो लगा कर अहम फैसला कराने वाला समाज अपने ऊपर हो रहे हमलों पर भी चुप्पी साध समय की प्रतीक्षा करने लगा है।संघ प्रमुख मोहन भागवत के वक्तव्य के बाद तो मानों ब्राह्मणों पर तुषारापात हो गया। जातीय व्यवस्था पर उनके उद्बोधन से जो बवंडर आया उस संघ के अन्य पदाधिकारी बहुत सफाई दिये लेकिन गांठ पड़ी तो पड़ती ही जा रही है। इस बीच कानपुर देहात में गरीब ब्राह्मण परिवार से सरकारी जमीन खाली कराने गयी प्रशासन की टीम की उपस्थिति में आग लगा। जिसमें मां-बेटी जल कर मर गयीं। प्रशासन ने आनन फानन में उनकी अंत्येष्टि करवा दिया लेकिन जो संदेश गया उस राज्य सरकार के लिये अच्छा नहीं रह। अभी यह मामला ठंढा भी नहीं हुआ था कि ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष सपरिवार विंध्याचल से माता विंध्यवासिनी का दर्शन कर लौट रहे थे रास्ते में उनकी गाड़ी किसी भाजपा नेता की गाड़ी से हल्की सी लग गयी। बताया जाता है कि भाजपा नेता के समर्थकों ने उनके साथ अच्छा वर्ताव नहीं किया। ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष राजेंद्र तिवारी ने वीडियो जारी कर कहा कि उनके व उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। अभी तक उस घटना का कोई पुरसाहाल नहीं है। घटनाओं को ध्यान से अध्ययन करेंगे तो स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में पहली बार ब्राह्मण राजनीति में अलग-थलग पड़ा है।भाजपा में जो भी ब्राह्मण नेता हैं वह जाति के प्रतिनिधित्व की मलाई तो काट रहे हैं लेकिन उनकी समस्याओं के समाधान में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गैर कांग्रेसियों के हाथ में पहुंच गयी है। प्रियंका गांधी की रुचि दलित और मुसलमान जोड़ने में है। बसपा सरकार में थी तो कुछ सत्तालोलुप ब्राह्मण चेहरे बसपा के प्रतीकात्मक ब्राह्मण नेता बने। उनके पास ब्राह्मण युवा जुड़े तो लेकिन मायावती की स्पष्टवादिता से वह निराश होकर वापस हो गये। सपा में ब्राह्मणों की क्या स्थिति है यह किसी से छुपी नहीं है। ले-दे कर भाजपा थी तो वह भी खुल कर पिछड़ा कार्ड खेल रही है। योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के फायरब्रांड प्रतीक के रूप में स्थापित तो हो गये हैं लेकिन ब्राह्मण समाज उनसे जुड़ने में सहजता नहीं दिखा पा रहा है। अब ब्राह्मण अवसर की तलाश में है। बुद्धजीवी कौम माने जाने वाले इस समाज के लोग सही समय पर चोट करने के लिये जाने जाते हैं। इस लिये ब्राह्मणों की खामोसी को उनके पराजय के रूप में देखना बहुत लोगों के लिये भारी पड़ सकता है। कहा जाता है कि ब्राह्मण अपने साथ हुये धोखे और अपमान को कभी भूलता नहीं है।

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